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________________ विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा krinimum विछुडना एगल्मे ही होता है। देखिये, हमारे सामने शकर रखी है, इसको हम इसक्ते, इसका स्वाद लेसक्ते, इसको सूंघ सक्ते, इसको देख सक्ते हे । इसलिये इसमे स्पर्श, 'ग्स, गंध, वर्ण है, इसीलिये यह शक्कर पुद्गल है । इम शक्करको घोलकर एक शक्करका गोला बना संक्ते है। फिर चूरा करके एक एक दाना अलग कर सक्ते है। . हमारी पांचों इन्द्रियोंसे जो ग्रह्य में आता है सब पुद्गल है। स्पर्शन इन्द्रिय या त्वचा या चर्मसे हम ढंडा गरम सश जानते हैं। रसना इन्द्रियसे हम रसको जानते है। नाक इन्द्रियसे गंधको जानते है । आंखसे वर्णको जानते है। कानसे शब्दको जानते हैं। शब्द भी पुद्गल है, हम उसे देख नहीं सक्ते है परन्तु उसका कठोरपना या नम्रपना मालम करते हैं । यह लोक पुद्गलसे भरा हुआ है। सबसे छोटे पुद्गलको जिसका दूसरा भाग नहीं होसक्ता परमाणु (particle) कहते है। दो परमाणुओंके बने हुए पिंडको लेकर कितनी भी संख्याके परमाणुओंके बने हुए पिंडको स्कंध ( molecule) कहते है ।* हमारी किसी भी इन्द्रियमे शक्ति नहीं है जो हम परमाणुओंको जान सकें। स्कंधोको हम इन्द्रियोंसे जान सक्ते है तो भी बहुतसे ऐसे स्कंध हैं जिनको हम इन्द्रियोंसे नहीं जान सक्ते है कितु उनका अनुमान उनके कार्योंसे करते है। ऐसे सूक्ष्म स्कंधोंमें ही कार्मण वर्गणाएं (Karmio molecules) है जिनसे कार्मण या शरीर या पुण्य पापका संचित शरीर बनता है, जैसा हम आपको पहले बता चुके हैं। पुदलका लक्षण हम मूर्तिमय या मूर्तीक (material) भी करसक्ते है। क्योंकि मूर्तीकपना (materiality) * 'अणवः स्कन्धाश्र-1-२५०+ --सु -
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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