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________________ जनक तत्व । [५३ वृक्षोंमें भी चेतना है। वे इच्छा करके भूख मिटानेकों कमती या ज्यादा हवा लेते हैं, पानी व मिट्टीको खींचते है। अतिव्याति दोष इसलिये नहीं है कि कोई ऐसा और पदार्थ जगतमें नहीं है जो जीव न हो और उसमें चेतना पाई जावे। असंभव दोष इसलिये नहीं है कि यह हमारे अनुभवमे या जाननेमें बराबर आरहा है कि मैं समझ रहा हूं, जान रहा हूं. यह बात साफर सबको प्रगट है। इसलिये जीवका लक्षण चेतना निर्दोष है । चेतना रक्षग जिसमें हो वही जीव तत्व है। संसारमें सर्व जीव आठ कर्मोंके संयोगमें हैं इसलिये संसारी जीवोंको अशुद्ध कहते है । जो कर्मों के बंधनसे छूट जाते हैं उनको शुद्धं, मुक्त व सिद्ध जीव कहते हैं। - शिष्य-अजीर तत्व किसे कहते हैं ? शिक्षक जिसमें जीवका लक्षण चेतना न हो उसको अजीव कहते है। अजीव इस लोक्में पांच हैं-पुगठ, आकाश, काल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय । शिप्य-पुदल किसे कहते हैं ? शिक्षक-पुद्गलका लक्षण स्पर्श, रस, गंध, वर्ण है । जिसमें ये चार गुण पाए जावें उसको पुद्गल कहते हैं। जो छुआ जासके, जिसमें कुछ स्वाद हो. जिसमें कोई गंध हो, जिसमें कोई वर्ण हो वह सब पुद्गल है। इसीलिये पुद्गलको मूर्तीक (materul) कहते हैं। पुद्गलका उल्था इंग्रेजीमें ( matter) मैटर किया जाता है। पुद्रलमें ही परस्पर मिलकर एक स्कंध या समूहरूप पिंड होजानेकी व स्कंध या पिंडका बिगड़कर विछुड़ जानेकी शक्ति है । मिलना व - *-स्पर्शरसगधवर्णवन्तः पुद्गलाः ॥ २३।५ त० सू० ।। -
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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