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________________ मेरा कर्तव्य। . [२९ हिसाबको कर रहे हो उस समय कोई बात करनेको आता है तो हम कह देते है कि फिर आना, इसी तरह जो दूसरे विचार आवें उनकी. तरफ यही उदासीन (indifference ) भाव रखना चाहिये । आप देखेंगे कि ५-१० दिनके अभ्याससे ही आपको सुख गाति मिलने लगेगी व आपकी आत्मामें कुछ बल भी बढ़ेगा, जो आपके कालेजके पाठके स्मरणमें सहाई होगा ! शिष्य-आपने यह कहा था कि यह आत्मा अमूर्तीक है फिर इसको जलके समान कैसे मान सक्ते है ? शिक्षक-आपका कहना ठीक है कि आत्मा अमूर्तीक है, परन्तु हमारे ज्ञानमें अमूर्तीकका ध्यान एकदमसे होना कठिन है। इसलिये हमें उस आत्माकी स्थापना ( representation) किसी वस्तुमे करके मनको स्थिर करनेका अभ्यास करना चाहिये । अभ्यास करते करते कभी ऐसा समय आयगा कि जलके देखनेकी जरूरत न पडेगी । आत्मा स्वयं अपने ध्यानमे आजायगा । शिष्य-मैं तो कलसे ही ऐसा अभ्यास शुरू कर दूंगा। क्या ध्यानकी सिद्धिके लिये और कुछ भी काम जरूरी है ? शिक्षक- बहुत अच्छा प्रश्न तुमने किया। प्रिय मित्र ! ध्यानका अभ्यास वास्तवमें एक चित्रका खींचना है। जैसे चित्रके खींचनेका अभ्यास चार बातोंसे होता है, वैसे ध्यानका अभ्यास चार बातोंसे होता है। वे चार बाते है-(१) चित्रका नकशा देखना (२) नकशा खींचना किसी शिक्षकसे सीखना (३) चित्रविद्याकी पुस्तकें पढ़ना (४) कागज व पेन्सिल लेकर चित्र खींचनेका अभ्यास करना, इसी.
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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