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________________ मेरा कर्तव्य । [२७. रोकनेसे या आत्मध्यानसे सुख शांतिका लाभ होगा। इसलिये यदि आपको सुखशांतिका लाभ करना है तो आत्मध्यान करनेको अभ्यास करना चाहिये। शिष्य- गुरुजी ! हम आत्माका ध्यान कैसे करें । शिक्षक-आप विद्यार्थी है। आप ध्यानका थोडासा अभ्यास कुछ देर प्रारम्भ कर दीजिये। मैं आपको आत्मध्यानका उपाय बताता हूं। लोग कहते हैं बहुत कठिन है परन्तु आत्माको अभ्यास करनेसे सुगम मालम होगा.। आत्मध्यान एक तरहका व्यायाम है। जैसे शारीरिक व्यायाम करनेसे शरीर पुष्ट होता है वैसे आत्मिक व्यायाम करनेसे आत्मा बलवान होता है। जैसे शरीरकी कसरत शुरू करते हुए कठिन मालूम होती है लेकिन एक दफे शुरू कर दी गई और कुछ दिन जारी राखी गई तो फिर सुगम होजाती है वही हाल आत्मीक व्यायामका है। आप सवेरे सूर्यके उदयके कुछ पहले जब आकाशमें लाली छारही हो, बिछौना छोड़कर व हाथ पग धोकर यदि कुछ मनमें ग्लानि हो तो बदन पोछकर व कपड़े बदलकर एक आसन या पाटा विछाकर अलग एकांतमें बैठ जावे । ५, १०, १.५ जितने मिन्ट आप दे सकें उतनी देरके लिये आप यह इरादा करलें कि इतनी देर के लिये मैंने दुनियांके सब कामोंसे छुट्टी लेली है। मैं इनी देर सिर्फ अपने आपसे बातें करूंगा। अपनी ही तरफ़ देखंगा। किसी और वस्तुकी तरफ दिल न लगाऊंगा। ऐसा दृढ़ संकल्प करके आप बैठ जाइये और अपना आसन.पद्मासन या अर्ध पद्मासन जना लीजिये। दोनों पर जांघपर रखकर बाएं हाथपर दाहना हाथ रखकर
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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