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________________ [१७' मै कोन हूं। . वहां कितनी जगहको घेरे हुए है। जवाब होगा कि वह घड़ी जितनी जगह बरे हुए है वही उस घड़ीका आकार है। इसी तरह हम जितनी जगह घेरे है वह हमारा आकार है । आप जितनी जगह घेरे हुए हो वह आपका आकार है। तथा हम ज्ञानका काम व सुख दुःखका जानना सर्व शरीरभरसे कर सक्ते है, शरीरसे बाहरकी चीजको जो हमसे नही छरही है उसके स्पर्शको हम मालम नहीं करसक्ते न उसके बिगाड़ सुधारका कोई दुःख सुख हमें सहन होता है। यदि एक ही समयमें हमारे सारे शरीर भरमें सुइयां चुभादी जावें तो हमें सारे शरीरभरमें एक साथ दुःखका अनुभव होगा। यदि हमारे शरीरसे एक इंच दूर हवामे सुइया हिलाई जावे या भोकी जावें तौ हमे उसका कुछ भी दुःख नहीं मालूम होगा। इससे यह जाना जाता है कि हरएक संसारी आत्माआ आकार उसके शरीर भरके बराबर है। आत्मा अपने शरीररूपी घरमें फैला रहता है। शिप्य-परन्तु शरीर तो छोटेसे बडा होता है, कभी बीमारीमे बड़ेमे कुछ छोटा होजाता है। बालकावस्थामे शरीर जरासा था युवानीमे बडा होगया, तव क्या आत्मा भी छोटेसे बडा व बड़ेसे छोटा होता है ? शिक्षक-वास्तवमें यही बात है, जैसे एक दीपकका उजाला एक बड़ेमें घडेभरमे ही फैलेगा, वही उजाला एक कोठरीमें कोठरीभरमे फैलेगा, वही एक कमरेमें कमरेभर में फैलेगा, वही मैदानमे और भी अधिक फैलेगा। जैसे दीपकके प्रकाशमें फैलनेकी व सकुड़नेकी शक्ति स्थान व पात्रके आधारसे है वैसे इस संसारी आत्मामें शरीरके आधारसे फैलने सकुड़नेकी शक्ति है। यही कारण है कि एक
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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