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________________ विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। शरीरके भीतरसे जब आत्मा निकलता है तुर्त कहीं न कहीं किसी शरीरमे चला जाता है। आपका आत्मा किसी शरीरको छोड़कर ही आपकी माताके गर्भमे आया था। आत्मा अविनागी है इससे इमका कभी नाश नहीं होगा। शिप्य-तो क्या पग्लोक है. पुनर्जन्म है ? तब यह बताइये कि इस आत्माका स्वभाव क्या है और क्यों यह कभी पशु होता है, कभी मनुष्य होता है, कभी वृक्ष होता है । जगतकी आत्माओमे भिन्नता यो है ? शिक्षक हम आपको बता चुके ह कि जगतमे कोई भी मूल पार्थ नाम नहीं होता है तब आत्माका बने रहना मानना ही होगा। पग्लो” मानना ही होगा पुनर्जन्म मानना ही होगा। आपने अपने आग्के जाननेकी इच्छा प्रगट की है यह जानकर मुझे रडा हर्प हमा है। भाई, आन्मा प्रत्येक मरीग्मे भिन्नर है। नथापि सर्वका मृत भाव एकसा हे । कोई भी अतर नहीं है । परन्तु ये सब नारी आत्माए अशुद्ध है । इनके साथ पुण्य पापल्पी कौका सम्बन्ध है । उन कर्मोक ही फलमे कोई पशु व कोई मानवके शरीग्मे पैना रोता है तथा इनकी विचित्र अवस्थाओके होने का कारण भी पुग्ध पाप कर्मोका फल है। पहले हम आपको हरएक आन्माका मूल स्वभाव वताएगे फिर यह समझाएंगे कि यह अशुद्ध कम होता है। इसके पार व पुण्यकर्मका बंध कैसे होता है व किस तरह कर्म अपना फल देता है। आपको इन बातोंके जाननेसे बडा ही लाभ होगा। आत्माका मूल स्वभाव ज्ञानमय है,शातिमय है. आनंदमय है, अमर्तीक है, यह स्वभावसे परमात्मा है, ईश्वर है, भगवान है ।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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