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________________ । मैं कौन हूं। बात समझनेकी है कि आत्मा तो एक अखंड सादा पदार्थ है । ( is one whole upbroken simple subatance) जबकि गरीर मकानके समान हड्डी, मांस आदि अंग उपंगोंके जुड़नेसे बना है। शिष्य-गुरुजी, मुझे आपसे आज यह जानकर बड़ा आनंद हुआ कि मैं आत्मा हूं, और शरीर मेरे रहनेका घर है। आत्मा चेतन है, शरीर अचेतन जड़ है। क्या गरीग्के छूटने वक्त आत्माका नाम नहीं होता है ? शिक्षक-प्रिय भाई ! आप तो बड़े विद्वान है। आपको तो मालूम है कि इस लोकमें न कुछ नया आता है न कुछ नाश ही होता है । मात्र अवस्थाएं ही बदला करती है। जो कोई वस्तु बनती है वह किसी पहली वस्तुकी दूसरी बदली हुई शकल है । जो कोई वस्तु विगड़ती है वह कोई दूसरी शकलमें बदल जाती है । कपडा रूईकी बदली हुई शकल है। कपड़ेको जलानेपर कपड़की राख कपड़ेकी बदली हुई शकल है । पानीकी बदली हुई शकल भाफ है या मेघ है। मेघोंकी बदली हुई शकल वर्षाका पानी या ओले है। कोई वस्तु नहींसे नहीं बनती है, कोई वस्तु सर्वथा नहीं बिगड़ती है । अवस्थाएं ही बनती व बिगड़ती है। जिनमें अवस्थाएं होती है वे न वनते या बिगडते हे जैसे परमाणु जड़ सदा बने रहते है उनसे अनेक वस्तुएं बनती है तथा बिगडती है। वैसे आत्मा पदार्थ भी सदा बना रहता है। न कभी जन्मता है और न कभी मरता है। - Nothing new is created, nothing is destroyed, only modifications appeer, Nothing comes out of nothing, nothing altogether goes out of existence.
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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