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________________ जैन और बौद्ध धर्म । [ २३१ समाधिगतकमे पूज्यपादस्वामी कहने हे-- यत्परः प्रतिपाद्योऽहं यत्परान् प्रतिपादये । उन्मत्तचेष्टितं तन्मे यदहं निर्विकल्पकः ॥ १९ ॥ भा०-मै दूसरोंके द्वारा समझाया जाऊं या मैं दूसरोंको समआऊं यह मेरी उन्मन चेष्टा है, क्योंकि मै (आत्मा) निर्विकल्प हूं। गौतमबुद्धने भी संयुक्तनिकाय अन्याकत मुत्त नं० १० मे बच्छ गोत्र परिवाजकके आत्मा सम्बन्धी प्रश्नपर मौन धारण किया है। उन पाली वाक्योका हिन्दी भाव यह है-एक दफे वच्छगोत्र परित्राजकने भगवान् गौतमसे प्रश्न किया कि क्या आत्मा है ? भगवान मौन रहे, फिर उसने पूछा क्या आत्मा नहीं है ? फिर भी भगवान मौन रहे। आनन्दने जब मोनका कारण पूछा तब भगवान ने कहाकि यदि मै आत्मा है ऐसा कहता तो नित्यवादीका साथी होता। यदि आत्मा नहीं है ऐसा कहता नो अनित्यवादीका साथी होता। इस कथनसे बिलकुल साफ प्रगट है कि जैसे जैनी आत्माको नित्य तथा अनित्य उभयरूप भिन्न २ अपेक्षासे मानते है उसी तरहकी मान्यता गौतमबुद्धकी थी। यदि वह जडवादी होता तो ऐसा कभी नहीं कहता । मौन रहनेसे बुद्धने बता दिया था कि आत्मा बचनोका विषय नहीं है, अनुभवका विषय है। (३) मोक्षका मार्ग जैन सिद्धांतने सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्रको मोक्षमार्ग माना है। उसी तरह बौद्ध पाली साहित्यमें आठ तरहका मोक्षमार्ग माना है जो जैनोंके रत्नत्रयमें गर्भित होजाता है। मज्झिमनिकायके नौमें सम्मादितिसुत्तमें कहा है
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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