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________________ जैन और बौद्ध धर्म । | २२७ 1 referred to the Sihanada Sutaa. I am inclined to agree that these abservances were gone through after the Bodhisatta had left his home In another place it is stated "Aham Bodhistato simano which clearly shows that he practiced these austerities, whilst he was struggling for Buddhahood 33 भावार्थ मैने सिंहनाद सून देखा, मै इस बात से सहमत हूं कि ये सब क्रियाएं बोधिसत्वने घर छोडनेपर की थीं । दूसरे स्थानपर लिखा है "मैं बोधिसत्व श्रमण " इससे साफर प्रगट है कि उन्होंने इन तपस्याओको उसी समय अभ्यास किया था जब वे बुद्धत्व के लिये उद्यम कर रहे थे । ऐसा अनुमान किया जाता है कि गौतमबुद्धने शक्तिसे अधिक तप कर लिया था । जैन शास्त्रोंकी आज्ञा है कि शक्तिके अनुसार T उतना बाहरी तप करे जिससे आत्मामें आनन्द वर्ते, क्लेशभाव न पैदा | आत्मध्यानकी सिद्धिके लिये बाहरी तप किया जाता है । जैसा श्री अमृतचंद्र आचार्य पुरुषार्थसिद्धयुपायमें लिखते है - चारित्रान्तर्भावात् तपोऽपि मोक्षगमागमे गढितम् । अनिगूहित निजवीर्यैस्तदपि निषेव्यं समा हितस्यान्तैः ॥ १९७ भा०-तप भी चारित्र के भीतर गर्भित है । आगममें इसे भी मोक्षमार्ग कहा है। अपने मनको समताभावमें रखनेवालों को अपनी शक्तिके अनुसार उसे पालना चाहिये । अधिक तप करने से गौतमबुद्धकी समझमें इस बाहरी कठिन तपस्या से आकुलता होगईं। उनकी समझमें यही आया कि वस रखके बाहरी सुगम मार्गपर चलते हुए भी आत्माका ध्यान किया जासक्ता है । इसीसे गौ मबुद्धकी पाली पुस्तकोंमें भी लिन है कि बुद्धने SUP
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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