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________________ मैं कौन हूं। [३ उ०-जड़से बनी वस्तुएं तो जान नहीं सक्ती हैं परन्तु कुछ रुधिर व मजकी ताकतसे जाना जाता होगा, आप वताइये अब क्या समनत है ? . * शिक्षक-भाई, जब आख, नाक, कान आदि जड़ हे व भोज्य पदार्थ जड है तब इनसे बना हुआ रुधिर व मग्ज भी जड़ क्यों नहीं होगा ? जड़मे जड़ ही बन सक्ता है, जैसे गेहंसे गेहूंकी रोटी, लोहेसे लोहेकी कड़ी, सोनेसे सोनेके गहने, रुईसे रुईके कपड़े, रेशमसे रेशमके कपड़े बनते है। जब जड परमाणुओंमें जाननेकी ताकत नहीं है तब उनके बने हुए जितने भी कार्य होंगे उनमें जाननेकी ताकत नहीं होसक्ती । विद्वानोंने कहा है जैसा कि मूल कारण होता है वैसा __उसका बना कार्य होता है । जो गुण मूलमें होते हैं वे ही उसके बने कार्यमें झलकते है। देखो जड़ मिट्टीमें स्पर्श है, स्वाद है, गंध है, वर्ण है, तब उसके बने हुए वर्तनोंमें भी, मटकैनोंमें भी 'प्यालोंमें भी ठंडा व चिकना स्पर्श है, रस है, गंध है व वर्ण है। इस लिये जब जड़ परमाणुओंमें व उनसे बने हुए पदार्थोंमें जडपना दीखता है--उनमें जानपना नहीं दिखलाई पड़ता है, तब उनसे वने शरीरमें व शरीरके किसी अंगमे जानपना कैसे होसक्ता है। इसलिये तुमको जानना चाहिये कि जो कोई जाननेवाला है वह जड़से भिन्न कोई और है। उसीको हम लोग आत्मा, जीव, चेतन, इत्यादि नामोंसे पुकारते है। जानना जब जड़का गुण नहीं है तब किसीका तो होना ही चाहिये क्योंकि गुण किसी चीजमें ही रहते है *-उपाठानकारणसदृशं कार्य भवति ।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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