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________________ १७४ ] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। नवमा अध्याय श्रावकोंका आचार। शिक्षक-श्रावकोंका आचार यदि आप सुनना चाहते है तो ध्यानपूर्वक सुनें। जैन सिद्धान्तमे पाच बत मुग्न्य है. इन्हींको पूर्णपने जैन साधु पालने हे व इन्हींको अपनी शक्ति अनुसार थोडेपसे श्रावक पालते है। वे पाच व्रत हे--अहिंसा सत्य. अस्तेय, बमचर्य, अपरिग्रह। इन बनोंकी पाच पाच भावनाएं हैं उनको विचारने हुए ब्रोंका पालन होता है । साधु इन भावनाओपर पूर्ण ध्यान रग्वन है नत्र श्रावक यथाशक्ति अपना ध्यान जमाते है। ____ अहिसावतकी पांच भावनाएं-१ वचनगुप्ति- वचनोंको सम्हालकर कहना जिससे हिमा न हो। २ गनोगुप्ति--मनमे विसीका बुग न विचाग्ना। ३ इर्यासमिति-भूमि देखकर चलना। ४ आठाननिरूपण समिति--वस्तुको देखकर उठाना रखना। ५ सालोकित पान भोजन--देखकर भोजन करना व पानी पीना व भोजनपानका प्रबन्ध करना । क्योंकि हिसाके कारण मन वचन काय हे. इसलिये इनकी सम्हाल रखना जरूरी है। सत्य व्रतकी पांच भावनाएं-१ क्रोध स्वाग-क्रोधले न करनेकी सम्हाल, २ लोभ त्याग--लोभ न करनेका विचार, ३ भीरुत्व त्याग-भय न करनेका साहस, ४ हास्य त्याग-हंमी मस्करीका त्याग, ५ अनुवीचि भाषण -जिन आगमके अनुकूल वचन
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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