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________________ १५४] विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। पूजित कुलमे जन्म हो. (१४३) नीचैर्गोत्र--जिसमे निंदित कुलमें जन्म हो। (८) अंतराय कर्म पांच प्रकार--(१४५) दानांतराय-दानमें विघ्न करे, (१४५) लाभांतराय, (१४६) भोगांतराय, (१४७) उपभोगांतराय, (१४८) वीयांतराय--आत्मबल घाने । __ यह हम आपको बता चुके है कि बंध होने समय कमोमें • स्थिति पड़ती है। यदि कपाय अधिक होती है, तो अधिक कपाय. कषाय कम होती है तो कम । आयु कर्मका विशेष भी बता चुके है । आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट व जघन्य स्थिति हम बताते है, मध्यमके अनगिनती भेद है। स्थिति भेट। कर्मनाम उत्कृष्ट जघन्य (१) ज्ञानावरण-- तीस कोडाकोडी सागर - अन्तर्मुहुर्त (२) दर्शनावरण-- (३) वेदनीय -बारह मर्त (४) मोहनीय- सत्तर ., --अंतरर्मुहूर्त (५) आयु - तेतीस सागर .. " (६) नाम- वीस कोडाकोडी सागर .-आठ मुहूर्त (७) गोत्र(८) अन्तराय-- तीस , ___.अंतर्मुहूर्त नोट-एक सागर अनगिनती वर्षोंका होता है। कोड़को कोड़से गुणा करनेसे कोडाकोडी होता है। ४८ मिनटका एक मुहूर्त होता है । उससे कम अन्तर्मुहर्न होता है। "
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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