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________________ - RAN आरव और बंध तत्व। [१४३ शिष्य -क्या हरएक कर्मके बन्धके लिये विशेष भाव भी होत है ? कृपाकर उनको बता दीजिए। शिक्षक-इनका जानना भी जरूरी है । (१)-ज्ञानावरण दर्शनावरणके वन्धक विशेष भाव १-प्रदोष-किसीने सच्चे तत्वोंका उपदेश किया हो नौ भी मनमें प्रसन्न होकर दुष्टभाव या ईर्पाभाव रखना। २-निन्हव-अपनेको किसी वातका ज्ञान होनेपर भी आलस्ट आदि कारणसे दुसरेके पूछनेपर कहना कि हम नहीं जानते है । अपने ज्ञानको छिपाना तथा अपने ज्ञानदाता गुरुका नाम छियाना। ३-मासय ईपीभावसे दुसरेको नहीं बताना । यह भाव रखना कि यदि यह जान जायगा, तो हमारी प्रतिष्ठा घट जायगी। ४-अन्तराय--ज्ञानकी उन्नतिके कारणोंमे विन्न करना। ५.-आसादन-ज्ञानको प्रकाश करनेसे किसीको मना करना । ६. उपघात--सच्चे ज्ञानको भी खोटी युक्तिसे ग्वंडन करना । शिप्य-ज्ञानावरण व दर्शनावरणके कारण एक क्यों है ? शिक्षक-दर्शनपूर्वक ज्ञान होता है। इसलिये दोनोंके वाधक कारण एकसे ही कहे गए है। (२) असाता वेदनीय कर्मक विशेष वंधके भाव । (१) दुःख पीडा रूपी परिणाम, (२) शोक-इष्ट क्तुके वियोगपर मलीन चित्त होना. (३) ताप--निदा आदिके निमित्तसे तीव्र पछतावेके दुःखित परिणाम या किसी वस्तु के न मिलने पर पछतावा (४) आकंदन--आसु निकालते हुए क्लेग भावकी नीनासे रुदन, करना, (५) वध- आयु इन्द्रिय बल श्वासोछ्वास प्राणोंका
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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