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________________ "१४२] विद्यार्थी जनधर्म शिक्षा । जिनसे पाप या पुण्य किया जाता है। जैसे समरम्भादि ३xमन, वचन. काय ३xकृत आदि ३४कपाय ४%१०८ जीवाधिकरणके भंट है। - अजीवकरणके ११ ग्यारह भेद है--- १-मूल गुण निर्वर्तना-शरीर, वचन. मन, वामाच्यामका बनना। २-उत्तर गुण निर्वर्तना--काठकी चौकी. मिट्टीके वर्तन, चित्रकर्म आदि काम गरीरके अंगोंसे बनाना । ३-अप्रवेक्षित निक्षेप--विना देखे हुए पदार्थको रखना। ४- दुष्टप्रभृष्ट निक्षेप-दुष्टतासे क्रोधमे आकर रखना । ५-सहसा निक्षेप-जल्दीसे यकायक जहातहा पटक देना। ६--अनाभाग निक्षेप--जहासे वस्तुको उठाना वहां न रखकर कहीं और रख देना। ७-भक्तपान संयोग रागवश भोजनमें पीनेकी वस्तु मिलाना। ८--उपकरण संयोग-टंडे वर्तनमे गर्म वस्त, गर्म वर्ननमें ठंडी वस्तु रखना आदि। ९ काय निसर्ग-कायका हिलाना। १० वचन निसर्ग--वचनोंका कहना । ११ मनोनिसंग-मनका हिलाना ।। नोट-यहा मनसे मतलब द्रव्य मनसे है जो हृदयस्थानमें आठ पत्तेके कमलके आकार है । यह हम पहले बता चुके हैं कि साधारण रीतिसे एक साथ सातों कर्म व कभी आठो कर्म बंधने है। तौ भी जिस कर्मके कारण भाव विशेष तरहके होते है उस कर्मका विशेष अनुभाग वन्धता है।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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