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________________ जीव तत्व। [११९ जिस पानीमें मिट्टी विलकुल मिली हुई है उस पानीको औदयिक पानी कहेंगे क्योकि मिट्टीके असरसे पानी मैला होरहा है । इसीतरह पहले चार भावोंको आप समझ लीजिये ।। (१) कर्मोके उपशम या दवनेसे जो भाव प्रगट हों उनको औपशमिक भाव कहते है। (२) कर्मोके नाशसे जो भाव प्रगट हो उनको क्षायिक भाव कहते है। (३) कर्मोके कुछ क्षय कुछ उपशम कुछ उदय या असरसे जो भाव हों उनको क्षयोपशियक भाव कहते है। (४) कर्मोके उदयसे या असरसे जो मलीन भाव हो उसको औदयिक भाव कहते हैं । इन चारोंके चार दृष्टात समझलीजिये(१) उपशम सम्यग्दर्शन-यह आत्मप्रतीति भाव मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी कपायके उपगमसे प्रगट होता है। (२)क्षायिकसम्यग्दर्शन-यह शुद्ध आत्म प्रतीति रूप भावदर्शन मोहकी तीन प्रकृति और चार अनंतानुबन्धी कपायके क्षयसे होता है । (३) मतिज्ञानयह क्षयोपशम भाव है। मतिज्ञानावरण कर्मोके क्षय या उपशमसे तथा उसीके कुछ उदयसे मतिज्ञान पैदा होता है। (४) क्रोधभाव-यह क्रोधके उदयसे होता है। (५)पांचवा पारिणामिक भाव किसी खास कर्मकी अपेक्षासे नहीं है, इसको स्वाभाविक भाव भी कहते है। दैव व पुरुषार्थ-हम इस सम्बन्धमें पहिले बता भी चुके है। यहा यह समझलेना चाहिये कि जितना आत्माका गुण, कर्मोके उपशम, क्षय या क्षयोपशमसे प्रगट होता है उसको पुरुषार्थ कहते हैं। कोंके उदयको दैव कहते हैं।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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