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________________ ११८] विद्यार्थी जैन धम शिक्षा। शिष्य--जीवतत्वके सम्बन्धमें कुछ और जाननेकी जरूरत है। शिक्षक--जीवोंके भाव पाच तरहके होते है--औपगमिक, शायिक, क्षयोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक । शिष्य-क्या इनका स्वरूप समझाएंगे। शिक्षक-इनका स्वरूप जानना बहुत जरूरी है। आत्मा और कौका सम्बन्ध प्रवाहकी अपेक्षा अनादिकालसे चला आरहा है। कर्मोका असर आत्माके भावोंपर पड़ता है और आत्माके अशुद्ध भावोंसे कर्मोका बंध होता है। हम आपको बता चुके है कि आठ कर्मोका बंध इस जीवके साथ है उनके कारणसे जैसे जैसे भाव जीवके होते है उनको बतानेके लिये पाच भेद जीवोंके भावोंक प्रसिद्ध है। इनको समझनेके लिये एक दृष्टात जान लेना चाहिये । जैसे पानीमें मिट्टी मिली हो तब यदि हम निर्मली फल डाल दें तो मिट्टी पानीके नीचे बैठ जायगी, ऊपर पानी साफ दिखलाई पड़ेगा। परन्तु जरा हिलनेसे फिर मिट्टी ऊपर आजायगी। इस पानीकी दशाको उपशम पानी कहेंगे अर्थात् ऐसा पानी जिसमे मिट्टी ढवी हुई है. दूर नहीं हुई है। यदि मिट्टीको जो नीचे बैठ गई है उससे पानीको अलग कर दूसरे बर्तन में लेलें तो वह पानी विलकुल साफ दीखेगा. उसमे मिट्टीका सम्बन्ध बिलकुल नहीं रहा, इससे यह पानी हिलानेसे भी मैला नहीं होगा। इसे क्षायिक पानी कहेंगे। यह ऐसा पानी है जिसमेसे मिट्टी बिलकुल दूर होगई है। यदि मिट्टी मिले पानीमेसे नीचे बैठी हुई कुछ मिट्टीको निकाल फेंक दें, कुछ मिट्टीको नीचे बैठे रहने दे व हिलानेसे कुछ मिट्टी पानीमे घुलीगई भी हो ऐसे कुछ मलीन पानीको क्षयोपशम पानी कहेंगे।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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