SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौबी० कर ध्यावें चरण आप के ७.ष्ट करम के खंडन हो ॥ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय चैत्र शुक्ल | पूजन एकादशी मोक्ष कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। संग्रह ३७१ . ........... अथ जयमाला।दोहा। | महाअर्घ-वप उतंग धन तीनसे, कंचन वरण सरंग । कोक चिन्ह चरनन विषे, नमन करूं वस अंग ॥ मेरुनंद समतेश जिन, दीजे बुद्धि रसाल । कर जोड़े विनती करूं, वरन शुभ गुण माल॥ . . चामर छन्द-छाड के विजय विमान नगर कौशला पुरी। मंगला सुमात चरण सेवती सबै सुरी ॥ मेघ के सुनंद नाथ इंद्र तोहि ध्यावते । लक्ष योजन प्रमाण नाग को बनावते ॥ ३ ॥ नृत्यतूर ठान के पिता सुनग्र आवते । प्रेम जासु मात पास भेज सौख्य पावते ॥ जाय के शची जिनंद गोद में लिये तबै । आन के सुरेंद्र देख मोद में भये जबै ॥ ४॥नाग पैसवार कीन्ह स्वर्ण शैल पे गये। न्हौन को उछाह ठान हर्ष चित्त में भये॥ देख रूप आप को अनंग बीनती लही। इन्द्र चन्द्र बृन्द आन शरण चर्ण की गही॥ ५॥ बीनती करे सुरेश युग्म हाथ जोड़ के । दीजिये पदाब्ज सेव मोह फंद तोड़ के ॥ तो बिना न देव कोय दूसरो निहारियो । लक्ष चार औ असी सुजौन से उबारियो.॥ ६ ॥ नाम आप के अपार रंचपार ना लहूं। शीस को नवाय नाथ ध्यान आप को गहूं ॥ फेर तात के अगार लाय मातको दिये । मेरु की कथा बखान बास आपने गये॥७॥ होत वृद्ध इंदु जेमवर्ष अष्टके भये । आप
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy