SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवी पूजन संग्रह ४६९ ... . धूप-अगर तगर शुभ लाय, धुप धनंजय के विषे । खेवत कर्म उडाय, सुमति जिनेश्वर चरण ढिग ।। ....... ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण, पंचकल्याण प्राप्ताय . अष्ट कर्म दहनाय धुपं निवपामीति स्वाहा। फल-श्रीफल आम अनार, पक्क मनोहर लाय के । पावै शिव तियसार, सुमति चरण जग ध्यावतें । . ॐ ह्रीं श्रीसमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय मोक्ष . फल प्राप्तये फलं निर्वामीति स्वाहा।। अर्थ-जल फल द्रव्य मिलाय, अर्घ सुकर धर लाय एं। आठों करम नसाय,सुमतिनाथ शिव दीजिये। ... ॐ ह्रीं श्रीसमतिनाथ जिनेन्द्राय गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ - पद प्राप्तये अर्घ निवपामीति स्वाहा। ... अथ पंचकल्याणक । छंद लीलावती। ... गर्भ-शुभ संजयंत तज सावन शुकला, दुतिया के दिन गर्भ लिया। मात सुमंगला के चरनन को, सेवे नित ही स्वर्ग तिया॥ जिम मुक्ता संपुट में राजे तैसे आप विराज रहे । बहु धनद करी रत्नन की वर्षा अनहद बाजे बाज रहे ॥ ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय श्रावण शुक्ल द्वितीया गर्भ कल्याण प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। -
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy