SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ... संग्रह चौबी० पायो सब कर्महान । तहां सिद्ध भये निर्भय निरास, सो सोहत है अद्भुत निवास ॥ १९ ॥ तुमरो पूजन ही मारग भव्य पाय, सो उतरेंगे भवपार जाय । अबलो तुमरो तीरथ जिनंद, सो बर्तत है आनंद कंद ॥२०॥ हम याचत है तुम पैदयाल, दुख दारिदटार करो निहाल । बखतावर रतन कहै वनाय, शिव सुख दीजे महावीर राय ॥ २१ ॥ , घत्ता छन्द-जय त्रिशिला प्यारे जग उजियारे भवि गण तारे मोक्ष दई। लख चरण तुम्हारे रविशशि हारे पूजन हारे शर्म लई ॥ २२ ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहाबीर जिनेन्द्रायः गर्भ, जन्म तप, ज्ञान, निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घ पद प्राप्तये महा निर्वपामीति स्वाहा । अथ आशीर्वादः दोहा-बीर महाअतिबीरजी,सन्मतिवर्द्ध सुजान।पंचनाम पूजें सदा,पावें पद निर्वान ॥ इत्याशीर्बादः । इति श्रीमहाबीर जिन पूजा संपूर्णा ॥ २४ ॥ समाप्त-अर्ध-छंद सुंदरी-ऋषभ जिनको आदि मनाय के अंत में महाबीर सुध्याय के । : चतुर्विंश जिनगुणगाय के, जजत हूं मैं अर्घ चढायक ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीऋषभ देवादि महावीर 'पर्यंत चतुर्विंशति जिनेन्द्रम्यः समाप्त्यर्घ निवंपामीति स्वाहा ॥ अथ आशीर्वादः । छंद अडिल-जे चौबीस जिनेंद्रतनी पूजा करें, इंद्रादिक पदपाय चक्रि पद को धरें। कीरति झै सुफराय मान जगमें सही,अनुक्रम तें शिव जाय सर्व बहु विधि लही ॥ २॥ इत्याशीर्वादः -
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy