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चौबी०
पूजन
संग्रह ५८२
जेम । फिर लाय तात के सदन इंद्र, लख माता हरषी बाल चंद्र ॥७॥ तांडव नाटक कीनो सरिंद, दिखलायो जिन दश भव अमंद । पहिले भवनांहर रूप धार, दूजे सौ धर्म सुरगं मझार । बिजयारध में पग धीश राय, कनक प्रज्वल नामा लहाय। चौथे भवलांतव नाक थान, पंचम हरिषेन नरिंद जान ॥९॥ षष्ठम महा शुक्र विर्षे जुदेव, सप्तम चक्री प्रिय मित्र येव । सहस्रार माह अष्टम प्रजाय, तहां ते चय उपजे नंदराय ॥ १०॥ तप कर अच्युत थानक सुरिंद, तहां ते चय आप भये जिनंद। यह भव दिखलाये नृत्य थान,सब जीव भये आनंद खान ॥ ११॥ पितमात पूज हरिकर पयान, जिन बालक बय धारे सुजान। यक देव परीक्षा काज आय, तिन नाग रूप लीनो वनाय ॥१२॥ क्रीडा तरु खेलत संग कुमार, सब भाग गये तिस तन निहार । प्रभु ततक्षिन ताको मद उतार, क्रीडा कर संगम देव हार ॥ १३ ॥ तब नाम दियो महावीर शूर, तिनथानक पहुंचो हरष पूर । युग मुनिवर नभ में गमन ठान, तिन के संशय उपजो महान ॥ १४ ॥ तुम पीढ़ जबै देखी दयाल, चित को विभ्रम सबही सुटाल। तब नाम दियो सन्मति उदार,इम तीस वरषके भये कुमार ।१५लख पूरव भव वैराग्य भाय, सिद्धारथ बन दीक्षा लहाय । तप द्वादश कर बहुक्षीण काय, चव घाति हान केवल लहाय ॥१६॥ ग्यारह गणधर गोतम सु आद, मुनि सहस चतुर्दश तज प्रमाद । अजया व्रत चंदन आदि धार सोहे सब छत्तिस सहस धार ॥ १७॥ यक लक्ष श्रावक अतिपुनीत, निगुनी श्रावकनी धर्म नीत । इम