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________________ चौबी० पूजन संग्रह ४५५ चवनाशियो सर्व के इश हैं ॥७॥ सहस इकतीस षट् शतक शिष्यक मुनी, शतक सैंतीस अर अर्ड पूरब धनी। तीन हज्जार त्रय लक्ष आर्या कही, धरत व्रत नेम बहु श्वेत साढा गही ॥८॥ सहस सम्यक्त लख तीन श्रावक बने,देत चत्र संघ को दान आदर ठने त्याग मिथ्यात्वलख पांच सौहै भली। श्रावका धर्म पाले महामन रली ॥९॥ देव देवी असंख्यात सिरनावते, वरें सब छांडि तिथंच संख्यावते । इन ही आदिक महा संघ सोहे जहां, करत सु बिहारजे देश आरज तहां ॥ १० भव्य गण बोध सम्सेद गिरि आइयो, योग निरोध के सिद्ध पद पाइयो । ज्ञान हग बीर्य सुख आप धारी भये, सकल सुर आयके शीस तुम को नये ॥ ११ ॥ कहत बखता रतनदास तुमरे सही, छाड सब देव को शर्ण तेरी लही। तोड मम फंद को ठाम निज दीजिये, हे जगन्नाथ यह अर्ज सुन लीजिये ॥ १२ ॥ घत्ता छन्द-जयमाल बखानी,सब सुख दानी,मवि मन आनी पाप हरे।जे पढ़ें पढावें स्वरधर गावें,तिन घर ऋद्धि अपार भरे॥ १३॥ डों ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म, तप, ज्ञान निर्वाण पंचकल्याण प्राप्ताय अनर्घषद प्राप्तये महाऽधं निर्वपामीति स्वाहा।। अथ आशीर्वादः।छंद मालती-जिन अजित जिनंदा सेवते चरनचंदा,सकलभवि अनंदा पूजिह त्यागगंधा। तिन घर ऋद्धि भारी पुत्र पौत्रादिसारी, सरब दुख निवारी सो लह मोक्ष प्यारी ॥ १४ ॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री अजितनाथ जिन पूजा संपूर्णा ॥ २॥ ..
SR No.010573
Book TitleVarttaman Chaturvinshati Jina Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBakhtavarsinh
PublisherBakhtavarsinh
Publication Year
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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