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________________ ३०४ वर्द्धमान ( ७६ ) वने महाद्वीप भविष्य-भूत के समध्य मे जीवन अन्तरीप-सा, सम्हाल ले जो पथ वर्तमान का वही अलक्ष्येन्द्र' समान ख्यात हो। ( ७७ ) लिये चले जीवन-भार शीस प, अके, रुके जो न कदापि मार्ग मे, वही सुधी सवल-युक्त अत में प्रसिद्ध साफल्य-सखा हुआ यहाँ। ( ७८ ) हुआ करे लोमश-मा प्रवद्ध या बना करे रावण-ना सुविक्रमी, परन्तु हो जीवन साधु राम-मा स्वकीय-कल्याण-विधान-मुस्पृही । प्रकाग ही हो अथवा तमिम्र हो, नुभाग्य ही हो अथवा कुरवप्न हो, प्रकप-मयुक्त कि स्वयं-युक्त हो, परन्तु हो जीवन जीविनाश्रयी'। ___ निबदर वादगार। 'मार्ग या पायद । जीदिर मदन लेनेवाला।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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