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________________ २०८ वर्द्धमान ( २८ ) "वजा जभी अश्रुत' काल-यंत्र तो भुका दिया गीस प्रमून-वृन्त ने विलोकिये, है कहते उसे, शुभे! तुरन्त सर्वेग-निदेश-पालना। ( २९ ) "हिरण्य-वर्णे। सुमने मुर-प्रिये ! अये जनेप्ठे वन-चद्रिके ! सहे । अये सुगधे । अयि चन्द्र-वल्लिके । वसन्त ने स्वागत प्रेम से किया। "प्रभात-ओस-स्नपिता' कुमारिका समीर-सचालित हेम-यूथिका भ-चक्र-सपोपित स्वर्ण-जातिका खिली हुई चित्र-अरण्य'-अक मे (३१) “न ज्ञात है कौन प्रसून प्रेय है, न जानती सुन्दर पुष्प कौन है, सहा', गवाक्षी अथवा शिखडिनी' कि मालती, माधविका कि मल्लिका। जो न सुना जा सके। 'चमली। 'वेला। 'माववी। हुये । 'फुलवाडी। गुलाब । वेला। जूही (सफेद) । लान दिन
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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