SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वमान 'मुलनणा तू निज चाल-ढाल मे, सुदेवता त निज अंग-डंग में, उपा-समा अवर' से ढकी हुई प्रशान-मी अवर में विराजती। “ययैव तू सुन्दर त्यो स-मिट है, यवैव है मिष्ट, तयव कोमला; ययैव तू कोमल दिव्य भी तया, व्यैव दिव्या उस भांति देवता । - ( १२ ) 'विरचि की केवल तून चातुरी, वरच है मानन-मूर्ति मामकी; नत! अर्गगिनि तू बनी यथा तथैव मेरा मृदु बर्ष-स्वप्न तु ।" ( ९३ ) नरेन, योही कुछ देर रात्रि में प्रसुल-वामांग निहारते रहे, प्रगाढ-तन्द्रा-वन मौलि-मव्यगा अवंव-वेणी-छवि धारते रहे। 'शका ! पड़ा। वार करते।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy