SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६५ पन्द्रहवां सर्ग ( १०४ ) "चतुर्थ शोभामय सत्य अग है, असत्यता ही शुभ-धर्म-नाशिनी, प्रसिद्ध है पचम अग शौच जो पवित्रता-मडित धर्म-तत्त्व है, ( १०५ ) "सदा त्रस' स्थावर-रूप विश्व मे समस्त-प्राणी-गण-रक्षणार्थ जो किया गया पालन इन्द्रियार्थ हो, प्रसिद्ध है सयम अग धर्म का। "पुन तपस्या दश-दो प्रकार की मनुष्य-द्वारा परिपालनीय है, पुनश्च जो त्याग प्रशस्त ख्यात है कहा गया सो शुभ अंग धर्म का। ( १०७ ) "परिग्रहो को बहु भॉति त्यागना कहा गया धर्म-अकिंचनाख्य है, महान जो सौख्यद साध-सत को तथा बनाता भय-हीन भी उन्हे । गर्मी से डरकर सर्दी में और सर्दी से डरकर गर्मी में भागनेवाले जीव ।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy