SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४८ वर्द्धमान ( ३६ ) पुन हुआ ध्यान उन्हे कि वे सुधी प्रसिद्ध थे 'स्थावर' नाम से कभी स-वेद वेदाग स-शास्त्र धर्म के महान् ज्ञाता द्विज पूज्य-पाद थे। ( ३७ ) तथैव आयी सुधि वीर देव को कि 'विश्वनदी-सुत विश्व-भूति' के महा प्रतापी वलवान विक्रमी अजेय योद्धा जब वे प्रसिद्ध थे। ( ३८ ) पुन. हुये संसृति में प्रसिद्ध वे "त्रिपिष्ठ नारायण' नाम से कभी मिला उन्हें उत्तम चक्र-रत्न था, प्रतीक' जो धर्म-प्रचार-कार्य का । ( ३९ ) विलोक होते निज आयु क्षीण वे असार संसार विचार चित्त में, विराग से साघु हुये, तथा गये, स-क्रोध त्यागा तन, देव-लोक को। 'चिह्न।
SR No.010571
Book TitleVarddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnup Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages141
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy