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________________ शुभ सन्देश और सम्मतियां पाशीर्वाद देता है कि तुम प्रपनी काव्य प्रतिभा का खूब विकास करो और धर्म की ज्योति बढ़ानो।" (पत्र ता. २९।५२९) ... . . . Dr.A. N. Upadhye, M. A., D. Litt., Raja Ram College, Kolhapur"I read portions of Shri Virendra Prasad's poem Tirthankara Bhagawana Mahavira'...........He seems to possess a natural gift and his verses flow with a remarkable liquidity and poet ic grace." ___ (His letter to Shri K. P. Jain dated 15-5-59) जन वाङ्गमय के वयोवृद्ध उद्भट विद्वान श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार, दिल्ली- "प्रापकी श्रद्धोपहार' के रूप में भेजी हुई 'तीर्थकर भगवान महावीर' नामक पुस्तक मुझे यथा समय मिल गई थी और में उसे सरसरो नजर से देख गया हूं। इस चरित्र-चित्रण में मापके उत्साह और परिश्रम को देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई. । यह उत्साह और परिश्रम यदि बराबर चालू रहा तो एक दिन माप अच्छे कवि बन जानोगे । इसके लिए मेरा प्रापको शुभा. शीर्वाद है पापका यह प्रथम प्रयास प्रायः प्रच्छा ही रहा है।". ... (पत्र ता० १२-८-२९) राजस्थानी साहित्य के प्रवेषक विद्वान श्रीमान् अगरचन्द जी नाहटा, बीकानेर:. . ... 'तीर्थकर भगवान महावीर' नामक प्रापका काव्य मिला । प्रापकी काव्य-प्रतिभा उत्तरोतर वृद्धि प्राप्त करे यही शुभ कामना है । काय बहुत अच्छा बन पाया है। जेनेतर व्यक्ति जन संस्कृति को ठीक समझ नहीं पाते इसलिए पापका गहू,प्रयास वास्तव में सफल और महत्वका है।"(ता०२५-५-४९) प्रख्यात उपन्यासकार मो अनेन्द्रकुमार जी, दिल्ली:.:. चिरंजाव वारेन्द्र की काव्य-कृति मिल गई । जहां तहाँले
SR No.010568
Book TitleTirthankar Bhagwan Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1965
Total Pages219
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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