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________________ 39 उपाचप्रमाणानि उत्ताना वै देवगवा वहन्ति (आ) उत्तीर्ण ब्रह्म धर्मि (आ) नवीनशैवीयम् उभयप्राप्तौ (आ) पा. सू. 2-3-66 उमासहायं नीलकण्ठं प्रशान्तं (आ) कै. 7 पु. सं. पक्कि सं. ..... 20 20 .... 62 12 ... 2409 .... 33 र 13 ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य (आ) क. 3-1 __ ... 144 ऋते तमेकं पुरुषं (स) म. भा. शा. 347-32 ... 277 289 ऋते मायां विशालाक्षी (स) श्री. रा. उ. ... 175 17 13 एक एव रुद्रो न द्वितीयाय (स) श्वे. 3-2, अ.शि.5 52 एक एव हि भूतात्मा (स) अ. बि 12 श्लो. .... 137 एकधा बहुधा चैव (स) 137 एकधैवानुद्रष्टव्यं (स) बृ. 4-4-20 246 एकमेव (आ) छा. 6-2-1 66 10 एकमेवाद्वितीयं (आ) छा. 6-2-1 120 14 133 एकश्शास्ता न द्वितीयोऽस्ति (आ) म. भा. आश्र. 27-1. (स) 308 12 एकाकी न रमेत (आ) बृ. 1-4-3 17 एकैव मूर्तिबिभिदे त्रिधाऽस्य (स) एको देवस्सर्वभूतेषु गूढः (आ) श्वे. 6-11, ब्रह्म. 3 7 (स) .... 66 .... 308 11 एको ह वै नारायण आसीत् (आ) म. ना. 1 .... एतं सेतु तीर्वा (स) छा. 8-1-2 ... 486 (आ) ... 180 16 12 16
SR No.010565
Book TitleTattvarthamuktakalap and Sarvarthasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVedantacharya
PublisherSrinivasgopalacharya
Publication Year1956
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size42 MB
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