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________________ A L Harpane T तत्वार्थसूत्र का महत्त्व तत्वार्थसूत्र को कुछ पाठभेद व सूत्रभेद के साथ जैनधर्म के सभी सम्प्रदायों ने समान रूप से स्वीकार किया है। वैदिकों में गीता का, ईसाइयों में वाइविल का और मुसलमानों में कुरान का जो महत्त्व है. वहीं महत्त्व जैन परम्परा में तत्त्वार्थसूत्र का माना जाता है। अधिक तर जैन इसका प्रतिदिन पाठ करते हैं और कुछ अष्टमी चतुर्दशी को ? दशलक्षण पर्व में इस पर प्रवचन भी होते हैं जिन्हें आम जनता बड़ी श्रद्धा के साथ श्रवण करती है। जो कोई इसका पाठ करता है उसे एक उपवास का फल मिलता है ऐसी इसके सम्बन्ध में ख्याति है। संक-. लन की दृष्टि से भी इसका महत्त्व कम नहीं है। इसमें जैन दर्शन की मूलभत सभी मान्यताओं का सुन्दरता पूर्वक संकलन किया गया है। इसके अन्त में मोक्ष का प्रधानता से विवेचन होने के कारण इसे मोक्षशास्त्र भी कहते हैं। किन्तु पुराना नाम इसका तत्त्वार्थसूत्र ही है। सभी आचार्यों ने इसका इसी नाम से उल्लेख किया है। अवश्य ही श्वेताम्बर परम्परा में इसका तत्त्वार्थाधिगम यह नाम कहा जाता है पर व्यवहार में वहां भी इसकी तत्त्वार्थसूत्र इस नाम से ही प्रसिद्धि है। पाठभेद का कारण तत्त्वार्थसूत्र के मुख्य पाठ दो मिलते हैं-एक दिगम्बर परम्परा: मान्य और दूसरा श्वेताम्बर परम्परा मान्य । इन दोनों पाठों में कोई * दशाध्यायपरिच्छिन्ने तत्त्वार्थे पठिते सति । फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुङ्गवैः ॥
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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