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________________ ज्ञान ४६० तत्त्वार्थ सूत्र [१०.९. - प्रत्येक बोधित और बुद्ध बोधित दोनों सिद्ध होते हैं। जो किमी 1 के उपदेश के बिना स्वयं अपनी ज्ञान शक्ति से ही 'बोध पाकर सिद्ध होते हैं वे प्रत्येक बोधित या स्वयं और बुद्धबोधित । पल बोधित कहलाते हैं और जो अन्य ज्ञानी से बोध प्राप्त कर सिद्ध होते हैं ये युद्धबोधित कहलाते हैं। वर्तमान दृष्टि से सिर्फ केवलज्ञानी ही सिद्ध होते हैं। भूत राष्ट्र से . दो, तीन और चार ज्ञानवाले भी सिद्ध होते हैं। दो से मति और श्रत ये दो ज्ञान लिये जाते हैं। नीन से मति, श्रुत और अवधि या मति, श्रुत और मनःपर्यय ये तीन ज्ञान लिये जाते हैं और चार से मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ये चार ज्ञान लिये जाते हैं। अवगाहना का अर्थ है आत्म प्रदेशों में व्याप्त कर अमुक श्राकार सं __ स्थित रहना वर्तमान दृष्टि से जिसका जो चरम शरीर है. ६ अवगाहना " उससे कुछ न्यून अवगाहना से सिद्ध होते हैं । भूतदृष्टि से जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम जिसे जो अवगाहना प्राप्त हो उससे सिद्ध होते हैं। जघन्य अवगाहना कुछ कम साढ़े तीन अरत्नि ( हाथ ) प्रमाण है, उत्कृष्ट अवगाह्ना पाँच सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है और मध्यम अवगाहना अनेक प्रकार की है। सिद्ध दो प्रकार के होते हैं--एक निरन्तर सिद्ध और दूसरे सान्तर ..... सिद्ध । प्रथम समय में किसी एक के सिद्ध होने पर 'अगर तदनन्तर दूसरे समय में जब कोई सिद्ध होता है तो उसे निरन्तर सिद्ध करते हैं और जब कोई लगातार सिद्ध न होकर कुछ अन्तराल से सिद्ध होता है तब उसे सान्तर सिद्ध कहते हैं। निरतर सिद्ध होने का जघन्य काल दो समय और उत्कृष्ट काल आठ समय है। तथा सान्तर सिद्ध होने का जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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