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________________ ४५८ तत्त्वार्थ सूत्र [१०. ९. बारह बातों द्वारा सिद्धों का विशेष वर्णनक्षेत्रकालगतिलिङ्गतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधितज्ञानावगाहनान्तरसंख्याल्पबहुत्वतः साध्याः ॥९॥ क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येक बोधित, बुद्धबोधित, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या और अल्पबहुत्व इन बारह बानों द्वार। सिद्ध जीव विभाग करने योग्य हैं। ___ सब सिद्धों का स्वरूप एकसा होता है, इसकी अपेक्षा उनमें कोई भेद नहीं है। इसलिये जिन बारह बातों को लेकर यहाँ विचार करनेवाले हैं उनकी अपेक्षा तत्त्वतः सिद्धों में कोई भेद नहीं होता, फिर भी इस विचार से उनके अतीत जीवन के सम्बन्ध में और यथा सम्भव वर्तमान जीवन के सम्बन्ध में बहुत कुछ जाना जा सकता है इसीलिये प्रस्तुत सूत्र द्वारा सूत्रकार ने सिद्ध जीवों के सम्बन्ध में विचार करने की सूचना की है। यहाँ क्षेत्र आदि बारह बातों के द्वारा विचार करते समय भूत और वर्तमान इन दोनों दृष्टियों से विचार करना चाहिये। जो नीचे लिखे अनुसार है वर्तमान का कथन करनेवाले नयकी अपेक्षा सभी के सिद्ध होने का १ क्षेत्र व क्षेत्र सिद्धिक्षेत्र, आत्मप्रदेश या आकाशप्रदेश है । तथा भूत का कथन करनेवाले नयकी दृष्टि से जन्म की अपेक्षा पन्द्रह कर्मभूमि और संहरण की अपेक्षा मनुष्यलोक सिद्धक्षेत्र है। ___ वर्तमान का कथन करनेवाले नयकी दृष्टि से जो जिस समय में कर्मों से मुक्त होता है वही उसके मुक्त होने का काल है। तथा भूत का ... कथन करनेवाले नयकी दृष्टि से अवसर्पिणी व उत्सरापिणी में जन्मे हुए सिद्ध होते हैं। इसमें भी विशेष विचार करने पर अवसर्पिणी के सुषमदुःषमा काल के अन्तिम भाग में
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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