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________________ ३२५ . ७. १५. ] चोरी का स्वरूप असत् कथन को प्रोत्साहन मिलता हो। यह दूसरी बात है कि वर्तमान कालोन आर्थिक व्यवस्था मनुष्य के अध्यात्म जीवन पर गहरा प्रहार कर रही है और इसलिये सहयोग प्रणाली के आधार से इसमें संशोधन होना चाहिये पर ऐसी विषम परिस्थिति के वशीभूत होकर अपने अध्यात्म जीवन में दाग लगाना किसी भी हालत में उचित नहीं है। उसकी तो रक्षा होनी ही चाहिये । सत्य ऐसा नहीं है जो बाहरी जीवन पर अवलम्बित हो । वह तो प्राणीमात्र के अध्यात्म जीवन की निर्मल धारा का सुफल है, अतः जैसे बने वैसे सत्य की रक्षा में सदा तत्पर रहना चाहिये ॥१४॥ चोरी का स्वरूपअदत्तादानं स्तेयम् ॥ १५॥ बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय अर्थात् चोरी है। साधारणतया यह नियम है कि माता पिता से जिसे जंगम या स्थावर जो द्रव्य प्राप्त होता है वह और अपने जीवन में जितना कमाता है वह या भेट आदि में जो द्रव्य मिलता है वह उसकी मालिकी का होता है। यदि कोई अन्य व्यक्ति दूसरे किसी की मालिकी की छोटी या बड़ी किसी भी प्रकार की बिना दी हुई वस्तु को लेता है. तो वह लेना स्तेय अर्थात् चोरी है। ____शंका-वर्तमान काल में पूँजीवादी परम्परा दृढ़ता से रूढ़ हो जाने के कारण कुछ ऐसे नियम प्रचलित हो गये हैं जिनसे एक ओर श्रमिकों को पर्याप्त श्रम का फल नहीं मिल पाता और इसके लिये संगठित आवाज बुलन्द करने पर राजशक्ति द्वारा वे कुचल दिये जाते हैं और दूसरी ओर साधनों के बल पर ही प्रत्येक पूंजीपति पूजी के ढेर के ढेर संग्रह करता जाता है। अब यदि कोई व्यक्ति इस अवस्था से ऊबकर. अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किसी पूजीपति के द्रव्य में से
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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