SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. ३०.] सत् की व्याख्या २४६ सकेंगे। किन्तु देखा यह जाता है कि जहाँ तक जिस पदार्थ को गमन करना होता है वे गमन करते हैं और जहाँ स्थित होना होता है वहाँ वे स्थित हो जाते हैं, इसलिये उक्त उदाहरण से तो यही निश्चित होता कि प्रथम विकल्प ठीक न होकर दूसरा विकल्प ही ठीक है। अर्थात् जब जीव और पुद्गल गमन करने के लिये प्रवृत्त होते हैं तभी धर्म द्रव्य गमन क्रिया में निमित्त होता है अन्यथा नहीं। इसलिये जितने भी निष्क्रिय पदार्थ हैं वे प्रेरकरूप से निमित्त नहीं हैं यह सिद्धान्त तो स्थिर हो जाता है। अब विचार केवल सक्रिय पदार्थों के विपय में ही रह जाता है सो विचार करने पर इनके विपय में भी यही निश्चित होता है कि ये भी प्रेरक निमित्त कारण नहीं हैं किन्तु धर्माद्रि द्रव्यों के समान ये भी उदासीन निमित्त कारण ही हैं। ये उदासीन निमित्तरूप से ही निमित्त कारण हैं ऐसा निर्णय करने के तीन कारण हैं १-जितने भी सक्रिय पदार्थ हैं उनमें निमित्तता की योग्यता सुनिश्चित नहीं है । एक बार वे जिस प्रकार के कार्य के होने में निमित्त होते है। दूसरी बार वे ठीक उससे विपरीत कार्य के होने में भी निमित्त होते हैं। उदाहरणार्थ-जो युवती प्रथम बार किसी को राग का विकल्प पैदा करने में निमित्त होती है वही युवती दूसरी बार उसी को विराग का विकल्प पैदा करने में भी निमित्त होती है। २-जितने भी सक्रिय पदार्थ हैं उनमें एक काल में भी निमित्तता की योग्यता सुनिश्चित नहीं है क्योंकि विवक्षित कार्यों के प्रति वे जिस प्रकार निमित्त होते हैं उनसे विपरीत कार्यो के प्रति वे उसी समय अन्य प्रकार से भी निमित्त होते हैं। उदाहरणार्थ-जो युवती किसी एक को राग का विकल्प पैदा करती है वही दूसरे को उसी समय विराग का विकल्प पैदा करने में भी निमित्त होती है। ३-कार्य उपादानरूप होता है किन्तु निमित्त उससे जुदा है। माना कि कोई कोई निमित्त उपादान से अभिन्न प्रदेशी भी होता है। जैसे
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy