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________________ २१० तत्त्वार्थसूत्र [५.८-११ इनमें से लोककाश के असंख्यात प्रदेश हैं। प्रस्तुत सूत्र में लोकाकाश और अलोकाकाश यह भेद न करके सामान्य आकाश के प्रदेश बतलाये गये हैं जो कि अनन्त हैं।८-९॥ पुद्गाल द्रव्य के प्रदेश इतर द्रव्यों के समान निश्चित नहीं हैं, क्यों कि मूल में पुद्गल द्रव्य परमाणुरूप है। किन्तु बन्ध के कारण कोई पुद्गल स्कन्ध संख्यात प्रदेशों का होता है, कोई स्कन्ध असंख्यात प्रदेशोंका होता है, कोई स्कन्ध अनन्त प्रदेशोंका और कोई स्कन्ध अनन्तानन्त प्रदेशोंका होता है। ____ पुद्गल द्रव्य और इतर द्रव्यों में यही अन्तर है कि पुद्गल स्कन्धोंके संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश बन्ध के कारण होते हैं, इस लिये उसके प्रदेश उन स्कन्धों से अलग अलग हो सकते हैं किन्तु अन्य द्रव्यों के प्रदेशोंका बन्ध प्राकृतिक है इस लिये उनके प्रदेश अपने अपने स्कन्धोंसे अलग नहीं हो सकते । कालाणुओंका परस्पर में संयोग तो है किन्तु बन्ध नहीं, इस लिये जितने कालाणु हैं उतनं काल द्रव्य कहे गये हैं। जैसा कि पहले बतलाया गया है कि पुद्गल द्रव्य मूल में अणुरूप है उसका विभाग नहीं किया जा सकता, इसलिये अणुके प्रदेश नहीं होते यह कहा है। इसके सम्बन्ध में अन्यत्र लिखा है कि 'जिसका आदि, अन्त और मध्य नहीं पाया जाता, जिसे इन्द्रियों से नहीं ग्रहण किया जा सकता और जो अप्रदेशी है, अर्थात् एक प्रदेश रूप होनेके कारण जिसके दो या दोसे अधिक प्रदेश नहीं पाये जाते वह परमाणु है।' सो इसका आशय यह है कि परमाणु से अल्प परिमाणवाली और कोई वस्तु नहीं पाई जाती इसलिये प्रदेशभेदकी कल्पना सम्भव न होने से उसे अप्रदेशी माना है। ___ शंका-यदि परमाणु सर्वथा अप्रदेशी है तो उसका एक साथ अनेक परमाणुओं के साथ संयोग कैसे होता है ?
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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