SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ तत्त्वार्थसूत्र [४.३७-४१. कराने के लिये अलग से सूत्र रचा है। पहली भूमि में नारकों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष प्रमाण है । ३५-३६ । भवनवासियों की जघन्य स्थितिभवनेषु च । ३७। उसी प्रकार भवनवासियों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष प्रमाण है। ____ भवनवासियों के प्रत्येक अवान्तर भेद की उत्कृष्ट स्थिति अट्ठाइसवें सूत्र में बतला आये हैं किन्तु उनकी जघन्य स्थिति बतलाना शेष था जो इस सूत्र द्वारा बतलाई गई है । यह दस हजार वर्ष प्रमाण जघन्य स्थिति भवनवासियों के सब अवान्तर भेदों की है यह इस सूत्र का तात्पर्य है ॥ ३७॥ व्यन्तरों की स्थितिव्यन्तराणां च । ३८ । परा पल्योपमधिकम् । ३८ । तथा व्यन्तरों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है । और उत्कृष्ट स्थिति साधिक पल्योपम प्रमाण है। सब प्रकार के व्यन्तरों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष प्रमाण और उत्कृष्ठ स्थिति साधिक पल्यापम प्रमाण है यह प्रस्तुत सूत्रों का तात्पर्य है । ३८-३६ । ज्योतिष्कों की स्थितिज्योतिष्काणां च। ४० । तदष्टभागोऽपरा । ४१ ।। इसी प्रकार ज्योतिष्कों की उत्कृष्ट स्थिति साधिक पल्योपम प्रमाण है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy