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________________ १४० तत्त्वार्थसूत्र [३.१-६. घनफल १४७ घन राजु बतला आये हैं। इन दोनों को मिलाने पर ३४३ घन राजु होते हैं। चित्र नं० ६ के अनुसार भी यह घनफल इतना हो प्राप्त होता हैं। इसी से लोक का प्रमाण जगश्रेणि के धनप्रमाण बतलाया है। शंका-घनफल किसे कहते हैं ? समाधान-जिसमें क्षेत्र की ऊँचाई, मोटाई और चौड़ाई तीनों का प्रमाण सम्मिलित रहता है उसे घनफल कहते हैं। शंका-राजु का प्रमाण कितना है ? समाधान--असंख्यात योजन । शंका-और जगश्रेणि का प्रमाण ? समाधान-सात राजु । यहाँ तक लोक और उसके अवान्तर भेदों की सामान्य चर्चा की। अब यह देखना है कि आखिर इस लोक में है क्या ? इसी प्रश्न का उत्तर देने के लिये तत्त्वार्थसूत्र के तीसरे और चौथे अध्याय की रचना हुई है। तीसरे अध्याय में अधोलोक और मध्य लोक की रचना का निर्देश किया गया है। अधोलोक में सात पृथिवियां हैं जिनमें नारकी जीव रहते हैं। मध्य लोक में द्वीप और समुद्रों के आश्रय से मनुष्य और तिथंच पाये जाते हैं । ऊर्ध्वलोक में देव रहते हैं। भवनत्रिक देव मध्यलोक और अधोलोक में भी रहते हैं। एकेन्द्रिय जीव सब लोक में सर्वत्र रहते हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि त्रस जीव त्रसनाली में ही रहते हैं। ___ यह लोक तीन वातवलयों के आश्रय से स्थित है। क्रम इस प्रकार है-लोक घनोदधि बातवलय के आश्रय से स्थित है। धनोदधि वातवलय धनवातवलय के प्राश्रय से स्थित है। घनवातवलय तनुवातवलय के आश्रय से स्थित है। तनुवातवलय आकाश के आश्रय से स्थित है। और आकाश स्वप्रतिष्ठ है। उसे अन्य आश्रय की आवश्यकता नहीं।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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