SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योनि ११४ तत्त्वार्थसूत्र [२.३१.-३५. योनि खुली हो वह विवृत योनि है तथा जो योनि कुछ ढकी हो और कुछ खुली हो वह संवृतविवृत योनि है। किस योनि में कौन जीव जन्म लेते हैं इसका खुलासा जीव देव और नारकी अचित्त गर्भज मनुष्य और तिर्यंच मिश्र-सचित्तचित्त शेष सम्मूर्च्छन जन्म वाले अर्थात् । पाँचों, स्थावर तीनों विकलत्रय, ! त्रिविध योनि-सचित्त, सम्मूर्च्छन पंचेन्द्रियतिर्यंच और । अचित्त और मिश्र मनुष्य देव और नारकी शीत और उष्ण योनि अग्निकाय उष्ण योनि शेष सब अर्थात् सब मनुष्य, । त्रिविध योनि-शीत, उष्ण अग्निकायकेसिवा चारोंस्थावरकाय, SMS विकलत्रय, सब पंचेन्द्रिय तिर्यंच ) देव, नारकी और एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय व संमूर्च्छन विवृत गर्भज मिश ___ शंका-अन्यन्न चौरासी लाख योनियाँ बतलाई हैं फिर यहाँ नौका निर्देश क्यों किया है ? समाधान-चौरासी लाख योनियाँ विस्तार से बतलाई हैं। पृथिवीकाय आदि जिस जिस कायवाले जीवों के स्पर्श, रस, गन्ध और वर्णवाले जितने जितने उत्पत्ति स्थान है वे सब मिलाकर चौरासी लाख हो जाते हैं। यथा-नित्य निगोद, इतर निगोद, पृथिवी, जल, अग्नि, वायु इनकी सात सात लाख, वनस्पति की दस लाख; द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय संवृत
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy