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________________ तत्त्वार्थसूत्र [२.१.-७. शमिक और क्षायोपशमिक भाव सम्भव नहीं हैं। इस प्रकार सब जीवों की अपेक्षा कुल भाव पांच ही होते हैं यह सिद्ध हुआ॥१॥ __इस सूत्र में इन पांच भावों के अवान्तर भेद गिनाये हैं जो सम मिल कर पन होते हैं ॥२॥ ___ कर्मों की दस अवस्थाओं में एक उपशान्त अवस्था भी है। जिन कर्म परमाणुओं की उदीरणा सम्भव नहीं अर्थात् जो उदीरणा के _अयोग्य होते हैं वे उपशान्त कहलाते हैं। यह अवस्था ग्रौपशमिक भाव १ आठों कर्मों में सम्भव है। प्रकृत में इस उपशान्त अवस्था से प्रयोजन नहीं है। किन्तु अधःकरण आदि परिणाम विशेषों से जो मोहनीय कर्म का उपशम होता है प्रकृत में उससे प्रयोजन है। मोहनीय के दो भेद हैं दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय । इनमें से दर्शन मोहनीय के उपशम से औपशमिक सम्यकत्व होता है और चारित्र मोहनीय के उपशम से औपशमिक चारित्र होता है। मोहनीय कर्म को छोड़ कर अन्य कर्मों का अन्तरकरण उपशम नहीं होता, इसलिये औपशमिक भाव के सम्यक्त्व और चारित्र ये दो ही भेद बतलाये हैं ॥३॥ पहले क्षायिक भाव के नौ भेद गिना आये हैं--केवल ज्ञान, केवल दर्शन,क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग, क्षायिक ... वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र । इनमें से क्षायिक भा मज्ञानावरण के क्षय से केवल ज्ञान, दर्शनावरण के क्षय से केवल दर्शन, पांच प्रकार के अन्तराय के क्षय से दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य ये पांच लब्धियां, दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक सम्यकत्व और चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक चारित्र प्रकट होते हैं। शंका-केवलज्ञान को केवलज्ञानावरण कर्म प्रावृत्त करता है फिर यहां ज्ञानावरण कर्म के क्षय से केवलज्ञान प्रकट होता है ऐसा क्यों कहा?
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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