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________________ [ १२ ] आधुनिक विद्वानों का मत इस प्रकार ये चार मत हैं जो प्रमुखता से तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता के सम्बन्ध में प्रचलित हैं। आधुनिक विद्वान् भी इन्हीं के आधार से कुछ न कुछ अपना मत बनाते हैं। अभी तक उन्होंने इस विषय में जो कुछ भी लिखा है उस पर से दो मत फलित होते हैं १ तत्त्वार्थाधिगम भाष्य के कर्ता उमास्वाति ने ही तत्त्वार्थसूत्र की रचना की है। इस मत का प्रतिपादन प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी प्रभृति विद्वान करते हैं। ये इन्हें श्वेताम्बर परम्परा का मानते हैं। __ २ तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता गृद्धपिच्छ उमास्वाति हैं जो कुन्द कुन्द के शिष्य थे। और तन्त्वार्थाधिगम भाष्य के कर्ता कोई दूसरे आचार्य हैं। इस मत का प्रतिपादन पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार प्रभृति बिद्वान करते हैं। ये इन्हें दिगम्बर परम्परा का मानते हैं। पं० नाथूरामजी प्रेमी ने भी इस विषय की विस्तृत चर्चा की है। उनका इस विषय का एक लेख स्व० बाबू श्री बहादुरसिंहजी सिंघी की स्मृति में सुए भारतीय विद्या' के तीसरे भाग में प्रकाशित हुआ है । इसमें प्रेमीजी ने प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी के मत का समर्थन किया है। यदि इन दोनों विद्वानों में कोई मतभेद है तो एकमात्र इस बात में है कि वे किस सम्प्रदाय के थे । प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी इन्हें श्वेताम्बर परम्परा का मानते हैं और प्रेमीजी यापनीय परम्परा का। अब मालूम हुआ है कि प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी का मत पुनः बदल गया है और वे भी प्रेमीजी के समान उन्हें यापनीय परम्परा का मानने लगे हैं। . १ देखो पं० सुखलालजी के तत्त्वार्थसूत्र का प्रस्तावना ।। ९ देखो माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला से प्रकाशित रत्नकरण्ड की प्रस्तावना ।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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