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________________ तत्वार्थ सूत्र [ १.३३. नय इस वाक्य द्वारा कहे गये व्यक्ति को एक नहीं मानता। वह मानता है कि कल चौक में देखे गये व्यक्ति से आज जिसे देख रहे हैं वह भिन्न है । यह काल भेद से अर्थ भेद का उदाहरण है । ७० जब हम बातचीत के सिलसिले में किसी एक व्यक्ति के लिए 'आप' और 'तुम' दोनों शब्दों का प्रयोग करते हैं तो यह नय 'आप' शब्द द्वारा कहे गये व्यक्ति को अन्य मानता है और 'तुम' शब्द द्वारा कहे गये व्यक्ति को अन्य । यह पुरुष भेद से अर्थ भेद का उदाहरण है। इसी प्रकार यह नय कारक, साधन और उपसर्ग आदि के भेद से अर्थ भेद करता है । इस तरह शब्द प्रयोगों में जो लिंगादि भेद दिखलाई देता है और उससे जो अर्थ भेद किया जाता है वह सब शब्द नय की श्रेणी में आता है। पर यह भेद यहीं तक सीमित नहीं रहता है किन्तु वह इससे भी आगे बढ़ जाता है । आगे यह विचार उठता है कि जब काल, कारक, पुरुष और उपसर्ग आदि के भेद से अर्थ में समभिरू नय भेद किया जाता है तब फिर जहां अनेक शब्दों का एक अर्थ लिया जाता है वहाँ वास्तव में उन शब्दों का एक अर्थ नहीं सकता । और इसलिये प्रत्येक शब्द का जुदा जुदा अर्थ होना चाहिये । इन्द्र शब्द का जुदा अर्थ होना चाहिये और शक शब्द का जुदा | इसी प्रकार जितने भी एकार्थक शब्द माने गये हैं उन सब के जुदे जुड़े अर्थ होने चाहिये । यद्यपि कहीं एक शब्द के अनेक अर्थ किये जाते हैं पर जिस प्रकार अनेक शब्दों का एक अर्थ नहीं हो सकता उसी प्रकार एक शब्द के अनेक अर्थ भी नहीं हो सकते । इस प्रकार शब्द भेद के अनुसार अर्थ भेद करनेवाला विचार समभिरूद नय कहलाता है । ऐसे समस्त विचार इस नय की श्रेणी में आते हैं । क्या यह भेद यही पर समाप्त हो जाता है या इसके आगे भी
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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