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________________ सर्वार्थ वच सिद्धि पान अ.१ ॥ ३) ग्दर्शन के चिह्न प्रशमादिक कहे तिनिकों आपकै स्वसंवेदनगोचर कहे तिनितें सम्यक्त्वका अनुमान करना कह्या तौ तत्त्वार्थ- 11 श्रद्धानहीकू स्वसंवेदनगोचर क्यों न कह्या ? ताका उत्तर- जो तत्त्वार्थश्रद्धानरूप जो सम्यग्दर्शन है सो दर्शनमोहके उपशम क्षयोपशम क्षयतें जो आत्मस्वरूपका लाभ होय ताकू कहिये है । सो यहु छद्मस्थकै स्वसंवेदनगोचर नाही अर प्रशमादि स्वसंवेदनगोचर है । तातै इनितें सम्यग्दर्शनका अनुमान करनां । ए अभेदविवक्षातें सम्यग्दर्शन अभिन्न है। तथापि भेदविवक्षातै भिन्न है । जाते ए सम्यग्दर्शनके कार्य है तातें कार्यते कारणका अनुमान हो है । केई वादी सम्य निका ग्ज्ञानहीकों सम्यग्दर्शन कहै हैं। तिनप्रति ज्ञानतें भेद जनावनेकै अर्थ सम्यग्दर्शनके कार्य जे प्रशमादिक ते जुदे कहिये।। तिनितें ताळू जुदा जानिये ॥ कोई कहै-प्रशमादिक मिथ्यादृष्टिसम्यग्दृष्टीकी कायादिकी क्रियाका व्यवहार समान दीखै तहां कैसे निर्णय होय ? । ताका उत्तर-जो आपकै जैसे दीखें तैसे पैलाका भी परीक्षाकरि निर्णय करनां । बहुरि वीतरागकै सम्यग्दर्शन अपने आत्माके विशुद्ध परिणामते ही गम्य है। तहां प्रशमादिकका अधिकार नाही । ऐसें तत्त्वार्थश्रद्धान दर्शनमोहरहित आत्माका परिणाम है सो सम्यग्दर्शन है। यात केई अन्यवादी इच्छादिक कर्मके परिणामकू सम्यग्दर्शन कहै हैं तिनिका निराकरण' भया। जात कर्मका परिणाम कर्मअभावरूप जो मोक्ष ताका कारण होय नाही.॥ आगै यह सम्यग्दर्शन जीवादि तत्त्वार्थगोचर है सो कैसे उपजै है ? ऐसा प्रश्र होतें, सूत्र कहै हैं ॥ तन्निसर्गादधिगमाद्वा ॥ ३ ॥ ___याका अर्थ- तत् काहिये सो सम्मग्दर्शन निसर्गते अर अधिमतै मउपजै है । निसर्ग स्वभावकू कहिये । अधिगम अर्थके | ज्ञानकू कहिये । इनि दोऊळू सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिरूप क्रियाके कारणकरि कहे । ऐसें सम्यग्दर्शन है सो निसर्ग वा अधिगम इन दोऊनितें उपजै है ऐसा जाननां । इहां प्रश्न- निसर्गज सम्यग्दर्शनवि अर्थका ज्ञान है कि नाही ? जो है यह भी अधि-गमज भया । बहुरि जो अर्थावबोध नांही है तो विनां जाने तत्वार्थवि श्रद्धान कैसे भया। ताका उत्तरदोनू ही सम्यग्दर्शनविर्षे अंतरंगकारण तौ दर्शनमोहका उपशम क्षयोपशम क्षय तीनूं ही समान हैं। ताके होते जो बाह्य ६) परोपदेशविनां होय ताकू तौ निसर्गज कहिये । बहुरि जो परोपदेशपूर्वक होय ताळू अधिगमज कहिये इनिमें यह भेद 1 है ॥ इहां सूत्रवि तत् ऐसा शब्दका ग्रहण, सो पहले सूत्रम सम्यग्दर्शन कह्या है, ताके ग्रहण अर्थ कह्या ३) कहै- लगता सूत्रविर्षे कह्या सो विना तत् शब्द ही ग्रहण होय है। ताकू कहिये, मोक्षमार्गका प्रकरण है। अर मोक्षमार्ग ..
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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