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________________ ॥ निःशीलवतत्वं च सर्वेषाम् ॥ १९ ॥ याका अर्थ- शील कहिये उत्तरगुण, व्रत कहिये मूलगुण, तिनकार रहितपणा है; सो सर्व आयु कहिये च्यायोंही आयुका आश्रव होय है । इहां सूत्रमें चशब्द है सो पहलै अल्पारंभपरिग्रहपणा कह्या ताका मनुष्यके आयुका समुच्चयके । वच१ अर्थ है । तातें अल्पारंभपरिग्रहपणा भी अरु निःशीलव्रतपणा भी मनुष्यआयुके आश्रव हैं, ऐसें जानना । शील अर व्रत इनका व्याख्यान आगें होसी । इनते रहित सो निःशीलव्रतपणां बहुरि सर्वेषां कहतां सर्वही आयुका यह आश्रव २६० जानना । इहां पूछै, जो, देवायुका आश्रवही भी शीलवतरहितपणात होय है कहा ? तहां आचार्य कहै हैं, सत्य है, होय | | है, परंतु भोगभूमिकी अपेक्षा जानना, तहांका जीव अव्रती है अर देवायुही बांधै है ॥ ___ आगें, चौथा आयु जो देवआयु ताका आश्रव कहा है ऐसे पूछ सूत्र कहें हैं ॥ सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि दैवस्य ॥ २० ॥ याका अर्थ-रागसहित संयमासंयम अकामनिर्जरा बालतप ए देवआयुके आस्रवके कारण हैं। तहां सरागसंयम संयमासंयम इनका व्याख्यान तौ पहले किया थाही । बहुरि काहूकू बंदीखाने रोकै तथा बंधनसे बांधै तहां भूक तृपाका भुगतना बहुरि स्त्रीका संगम नाहीं तातें ब्रह्मचर्य भी सहजही तथा भूमिपर सोवना शरीरावि मलका धारण तथा परके किये पीडा दुःख सहना सो अकामनिर्जरा है । विना लिये दुःख आये तिनकं सहहै, सो पापकर्मनिकी निर्जरा होय है । बहुरि मिथ्यात्वकरि सहित विना उपाय कायक्लेश जामें पाईये ऐसे कपटकी बहुलताकरि व्रत धारना जामें होय, | सो बालतप कहिये । ते ए देव आयुके आश्रवके कारण जानने ॥ इहां विस्तार, जो, जिनतें अपना भला जाने ऐसे मित्रनिका तो संबंध करै, आयतन कहिये कल्याण होनेके ठिकाणे 16 देव शास्त्र गुरु तिनकी सेवा करै, भले धर्मका आश्रय करै, धर्मका गुरुपणा महान्पणां दिखावै, निर्दोप प्रोषधउपवास ३ करै, जीवअजीवपदार्थनिके विना जाणे बालतप करै, तथा अज्ञानरूप संयम पालै ऐसें केई क्लेशभावनिके विशेपते भवनवासी व्यंतर आदि सहस्रारस्वर्गपर्यंतवि उपजै हैं । बहुरि अकामनिर्जरावाले सूत्रमें कहे हैं तिनके विना लिये दुःख आवै तामें संक्लेशपरिणाम न करै ऐसा बहुरि धर्मबुद्धि पर्वततें पडै वृक्ष चढि पडै अनशन करै अग्नि जलमें प्रवेश करै विष खाय ऐसे मरण करै चित्तमें करुणा राखै जलकी रेखा समान क्रोध तिनके होय ऐसे व्यंतरादिवि उपजै हैं ॥
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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