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________________ सर्वार्थ वचनिका पान ॥ तदनन्तभागे मनःपर्ययस्य ॥ २८ ॥ याका अर्थ- सर्वावधिका विषयकू अनंतका भाग देतें पाया जो सूक्ष्मपुद्गलस्कंध ताविपैं या मनःपर्ययज्ञानका विष। यका नियम है ॥ जो रूपी द्रव्य सर्वावधिज्ञानका विपय कह्या ताळू अनंतभागरूप किया तिस एक भागवि या मनः पर्ययज्ञान प्रवतॆ है। इहां ऐसा जाननां, जो, परमावधिका विपयभूत पुद्गलस्कंध· अनंतका भाग दीये तो एक परमाणुसिद्धि टीका मात्र सर्वावधिका विषय होय है । बहुरि ता• अनंतका भाग दीये ऋजुमति मनःपर्ययका विपय है । बहुरि ताकू भी अनंतभाग दीये विपुलमति मनःपर्ययका विपय है । इहां कोई पूछ सर्वावधिका विपय तौ एक परमाणुमात्र कह्या ताकू अनंतका भाग देना कह्या सो एकपरमाणूकू कैसे भाग देना ? तहा ऐसा उत्तर–जो, एकपरमाणूमैं स्पर्श रस गंध वर्णके अनंतानंत अविभागप्रतिच्छेद हैं, तिनिके घटने वधनेकी अपेक्षा अनंतका भाग संभवै है । जैसा परमाणु अवधिज्ञान जान्या तिसके अनंतवै भागळू मनःपर्यवज्ञान जानै है तथा एकपरमाणुमात्रस्कंध भी होय है । ताविर्षे सूक्ष्मभाव परिणये अनंतपरमाणु होय हैं । तिस अपेक्षा भी अनंतका भाग संभवै है। तहा स्वयोग्य केईक पर्यायरूप पुद्गलस्कंध लेना सर्वद्रव्यपर्यायका भी विपय नाही ॥ आगैं, अंतवि कह्या जो केवलज्ञान ताका कहा विपयनियम है ? ऐसा प्रश्न होते सूत्र कहै है - अ.. ॥ सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ॥ २९ ॥ __याका अर्थ- केवलज्ञानका विपयका नियम सर्व द्रव्य सर्वपर्यायनिवि है ॥ इहां द्रव्य तथा पर्याय ऐसे इतरेतरयोग नामा द्वंद्वसमासते वृत्ति करणी । तहां सर्वपद दोऊकै लगावणां । तव सर्व द्रव्य तथा सर्वपर्यायनिवि विपय नियम है ।। ऐसा अर्थ भया ॥ तहां जीवद्रव्य तौ अनंतानंत है । बहुरि पुद्गलद्रव्य अणुस्कंधका भेदकरी जीवद्रव्यते अनंतानंतगुणे है।। धर्म अधर्म आकाश ए तीन एक एक द्रव्य है । तातें तीनही है । बहुरि कालद्रव्यके कालाणु असंख्यातद्रव्य हैं । तिनि 2सर्व द्रव्यनिके पर्याय अतीत अनागत वर्तमानरूप जुदे जुदे अनंतानंत है । तिनि सर्वद्रव्य सर्वपर्यायनिके समूहविर्षे ऐसा कछु भी नाही है, जो, केवलज्ञानके विपयपणांकू उलंघै.। जातें यहु ज्ञान अपरिमित माहात्म्यरूप है। ऐसा जनावनेकू सर्वद्रव्यपर्यायविपयस्वरूप केवलज्ञान है ऐसा कह्या है । इहां यहु विशेष अर्थ जाननां, जो कोई अन्यवादी कहै है सर्वज्ञ पुरुप आत्माहीकू जान है इस सिवाय पदार्थ कोई नांही। ऐसैं कहनेवालेका निपेधकै अर्थि सर्वकू जान है ऐसा कह्या है
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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