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________________ श्रीः । ॥ श्रीवल्लभ पुष्टिप्रकाश ॥ प्रथम भाग । ॥ श्रीकृष्णाय नमः ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः ॥ अथ श्रीसातों घरकी सेवा प्रकाशमें सेवाकी रीतिसों श्रीपुष्टिमार्ग में श्रीठाकुरजीकी सेवाविषे केवल स्नेह वात्सल्य मुख्य है, जैसे माता अपने बालककी वत्सलता विचारत रहै । और पतिव्रता स्त्री अपने पतिकी प्रसन्नता चाहेवो करे । और (यथा देहे तथा देवे ) इत्यादि शास्त्रीय विधि पूर्वक जैसे उष्णकालमें अपनेको गरमी लगे है और शीतकाल में अपनेको सरदी लगे है और समयपर भूख प्यास लगे है । तामें जैसे आपन सर्व प्रकारसों रक्षा करें हैं । तैसे समयानुसार भगवत् स्वरूपमेंहूँ विचारत रहे सो ही सेवा है | और केवल जहाँ माहात्म्यहै सो पूजा क ही जाय । हियाँ माहात्म्यकी विशेषता नहीं है । हीयाँ तो केवल प्रीतकी पहुँचान है । जैसे गोविन्दस्वामीने गायो है कि, " प्रीतम प्रीत होते पैये" जाप्रकार श्रीनजभक्तननें श्रीठाकुरजीको प्रेम विचारके सेवा करी है ताही प्रकार श्रीव्रजभक्तनकी आड़ी यह सेवा है। जैसे या पदमें गायो है के "सेवारीत प्रीत व्रजजनकी जनहित जग प्रगटाई । दास शरण हरिवागairat चरणरेणु निधि पाई" | और सूरदासजीने गायो है । " भज साख भाव भाविक देव । कोटिसाधन करो कोऊ तोऊ न माने सेव ॥ १ ॥ धूम्रकेतु कुमार मांग्यो कौन मारग नीत । पुरुषते स्त्रिय भाव उपज्यो सबै उलटी रीत ॥ २ ॥ वसन भूषण ANCIENT PROS HOM
SR No.010554
Book TitleVallabhvrushti Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangavishnu Shrikrushnadas
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1937
Total Pages399
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size121 MB
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