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________________ B 'यह रुक्मी पर्वत दोसौ योजन ऊंचा है। पचास योजनकी गहरी नीचे जमीनमें इसकी नीम है। अध्याय चार हजार दोसौ दश योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें दश भाग प्रमाण चौडाई है । इसकी पूर्व पश्चिम ओरकी भुजाओंमें प्रत्येक भुजा नौ हजार नौसौ छिहचर योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें नौ भाग आधा भाग कुछ अधिक है। इसकी उचरकी ओरकी प्रत्यंचा त्रेपन हजार नौसौ इकतीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें छह भाग कुछ अधिक है । इसकी प्रत्यंचाका धनुषपृष्ठ 2 सचावन हजार दोसौ तिरानवे योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें दश भाग कुछ अधिक है। इस रुक्मी पर्वतके ऊपर सिद्धायतनकूट १ रुक्मीकूट २ रम्यककूट ३ नरकांताकूट ४ बुद्धिकूट ५५ रूप कूल कूट ६ हेरण्यवतकूट ७ माणकांचनकूट ८ ये आठ कूट हैं। क्षुद्रहिमवान् पर्वतके कूटोंका जिसप्रकार प्रमाण वर्णन कर आये हैं उसीप्रकार इनका भी प्रमाण समझ लेना चाहिये । इन कूटोंपरके जो जिन मंदिर और प्रासाद हैं वे भी क्षुद्रहिमवान् कूटोंके मंदिर और प्रासादोंके समान समझ लेना है चाईये । इन कूटोंके अग्रभागोंमें जो प्रासाद है उनमें अपने अपने कूटोंके नामोंके धारक देव और देवियां निवास करते हैं। प्रश्न-शिखरी पर्वतकी शिखरी संज्ञा कैसे है ? उचर EBHADRASREPOPUREGEABE ANABAJANARSINGEBOBCCES PRINCESTRICखरीति संज्ञा ॥११॥ जिसपर शिखर अर्थात् कूट हों वह शिखरी कहा जाता है इस व्युत्पत्तिके आधारपर पर्वतकी शिखरी है संज्ञा है। यदि यहाँपर यह कहा जाय कि-शिखर तो और पर्वतोंक भी विद्यमान हैं। यदि शिखरवाला | शिखरी माना जायगा तो अन्य पहाडोंको भी शिखरी कहना होगा । सो ठीक नहीं, जिसप्रकार जिसके शिखंड-शिखा अथवा चोटी होती है वह-शिखंडी.कहा जाता है । यद्यपि शिखंड मयूरसे अतिरिक्त
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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