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________________ . इस नील पर्वतके ऊपर सिद्धायतनकूट १ नीलकूट २ पूर्व विदेहकूट ३ सीताकूट ४ कीर्तिकूट ५ है। || नारीकांताकूट ६ अपरविदेहकूट ७ स्म्पककूट ८. और आदर्शकूट ९ ये नौ कूट हैं । इन कूटोंक भी । स्वरूपका वर्णन क्षुद्रहिमवानके कूटों सरीखा समझ लेना चाहिये । उन कूटोंके ऊपरके ज़िनमंदिर और प्रासादोंका वर्णन भी क्षुद्रहिमवान के जिनमंदिर और प्रासादोंके समान समझ लेना चाहिये । इन कूटोंके Fil ऊपर जो प्रासाद हैं उनमें अपने अपने कूटों के नामों के धारक देव और देवियां निवास करते हैं। प्रश्नजा रुक्मी पर्वतकी रुक्मी संज्ञा कैसे है । उत्तर रुक्मसहावाद्रुक्मीत्यभिधानं ॥९॥ __ जहां पर रुक्म (:सुवर्ण) बाहुल्परूपसे विद्यमान हो वह रुक्मी कहा जाता है, इस रूपसे पर्वतका | रुक्मी यह नाम अन्वर्थ है। यदि यहां पर यह शंका की जाय कि रुकमकी विद्यमानता तो दूसरे दूसरे या पर्वतोंमें भी है । यदि रुक्मके संबंधसे रुक्मी कहा जायगा तो अन्य पर्वतोंको भी रुक्मी कहना अनि| वार्य होगा? सो ठीक नहीं। जिसके कर (हाथ वा ढूंढ) हो वह करी कहा जाता है। कर मनुष्यके भी ॥ है और करी नाम अन्य वस्तुओंका भी हो सकता है तथापि रूढि क्लसे जिसप्रकार करी हाथी ही कहा | जाता है उसीप्रकार भले ही अन्य पर्वतोम रुक्मकी विद्यमानता हो तथापि रुक्मी,यह नाम पर्वत विशेष | रुक्मीका ही है । प्रश्न-इस रुक्मी पर्वतकी रचना कहां है ? उत्तर- . . . . . . . . . : रम्यकहैरण्यवतविवेककरः ॥१०॥ FIL... यह रुक्मीपर्वत रम्यक् और हैरण्यवतक्षेत्रका विभाग करने वाला है । महाहिमवान पर्वतका जो.. Jee प्रमाण वर्णन कर आए हैं। उसीके समान इसका भी समझ लेना चाहिये । अर्थात्- .. . .
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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