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________________ यास सम्यक्त्वके साथ बाहर निकलते हैं वे तियच और मनुष्यों में आकर जन्म धारण करते जो तिर्यचों में उत्पन्न होते हैं वे पंचेंद्रिय गर्भज संज्ञी पर्याप्तक और संख्येय वर्षायुवाले तिर्यंचोंमें ही उत्पन्न होते है अन्य तियों में नहीं । जो मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं वे गर्भज पर्याप्तक और संख्येय वर्षायुवाल में ही होते हैं | । अन्यों नहीं । जो नारकी सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं वे सम्यग्मिथ्यादर्शनसहित बाहर नहीं निकलते अर्थात् सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें मरणका प्रतिषेध है। जो नारकी सम्यग्दृष्टि है और सम्यक्त्व सहित ही 8 बाहर निकलते हैं वे केवल मनुष्यगतिमें ही जन्म धारण करते हैं तथा मनुष्योंमें भी गर्भज, पर्याप्तक र और संख्येय वर्षायुवालों में ही उत्पन्न होते हैं अन्योंमें नहीं । तथा सातवीं महातमःप्रभा भूमिमें रहनेवाले मिथ्यादृष्टि नारकी जिस समय नरकसे बाहर निकलते हैं उस समय केवल तिर्यंचगतिमें ही जन्म धारण करते हैं एवं तिथंचगतिमें भी पंचेंद्रिय गर्भज पर्याप्तक और संख्येय व युवालों में ही जन्म धारण करते हैं अन्योंमें नहीं। __तथा सातवीं पृथिवीसे निकलकर जो नारकी तियच होते हैं वे सब सुमतिज्ञान सुश्रुतज्ञान अवविज्ञान सम्यक्त्व सम्यमिथ्यात्व और संयमासंयमको धारण नहीं करते। छठी पृथिवी से निकलकर जो नारकी तिथंच और मनुष्य होते हैं उनमें कोई कोई मतिज्ञान श्रुनज्ञान अवधिज्ञान सम्पक्व सम्पमिथ्यात और है संमयासंयम इन छहोंको प्राप्त होते हैं सब नहीं। पांचवी पृथिवीसे निकलकर जो जीव तियचों में आकर जन्म धारण करते हैं उनमें भी कोई कोई मातिज्ञान आदि छहोंको धारण करते हैं सब नहीं और जो मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं उनमें भी कोई कोई ही मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान मनःपर्ययज्ञान सम्यक्त्व सम्यामिथ्यात्व और संयमासंयमको धारण करते हैं सब नहीं। तथा इनसे भिन्न भी किसी अन्य HOCIENCREAMPIECEIGHEROINSOMNAARAM PARENESCLASSIBIOTRE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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