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________________ ज०रा० भाषा ८२७ . असंज्ञी पंचेंद्रिय जीव पहिली भूमि तक जाते हैं सरीसृप ( जलसर्प गोह आदि ) दूसरी तक, पक्षी तीसरी तक, भुजंग चौथी तक, सिंह पांचवीं तक, स्त्रियां छठी तक और मत्स्य एवं मनुष्य सातवीं भूमि तक जाते हैं । देव और नारकी अपनी उसी पर्यायसे नरकों में नहीं जाते हैं । बीचमें दूसरी पर्याय धारण कर जा सकते हैं। " विशेष - जो जीव मद्दा मिथ्यात्वी बहुत आरंभ और परिग्रहके धारक हैं वे ही नरकगतिके बंध | होनेपर नरक जाते हैं । उनमें भी तिर्यच और मनुष्य ही जाते हैं । तिर्यंचों में भी एकेंद्रिय से लेकर चौइंद्रिय पर्यंत जीव नहीं जाते। पंचेंद्रिय ही जाते हैं । पहिली रत्नप्रभा भूमिमें जो जांव मिथ्यात्वसहित उत्पन्न होते हैं उनमें बहुत से तो मिथ्यात्वसहित ही बाहर निकलते हैं। बहुतसे उत्पन्न तो मिथ्यात्व सहित होते हैं परंतु निकलते सासादन सम्यक्त्व| सहित हैं। बहुतसे मिध्यात्वसहित उत्पन्न होते हैं परंतु निकलते सम्यक्त्वसाहित हैं। तथा बहुत से सम्यक्त्वसहित ही उत्पन्न होते हैं और सम्यक्त्वसहित ही निकलते हैं । यह कथन क्षायिकसम्यग्दर्शन की अपेक्षा है क्योंकि सम्यग्दर्शनका कभी नाश नहीं होता । दूसरी शर्कराप्रभा पृथिवीसे लेकर छठो तमःप्रभा पृथिवी पर्यंत पांच पृथिवियोंके नारकियों में नारकी मिथ्यात्व के ही साथ तो उत्पन्न होते हैं परंतु उनमें बहुतसे तो मिथ्यात्व के साथ ही निकलते हैं, बहुतसे सासादन सम्यक्त्व के साथ बाहर निकलते हैं एवं | बहुत से सम्यक्त्वके साथ निकलते हैं । तथा सातवीं पृथिवीमें जो नारकी उत्पन्न होते हैं वे मिथ्यात्व के साथ ही उत्पन्न होते हैं और मिथ्यात्व के साथ ही बाहर निकलते हैं । तमःप्रभा पृथिवी तक जो ऊपर की छह पृथिवियां हैं उनसे जो नारकी मिथ्यात्व और सासादन IRISAKS अध्याय ३ ફરહ
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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