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________________ अध्याय ३ RORISTREGALISKHERIENCERan असुरकुमार देवोंद्वारा प्रगट किये दुःखोंको एवं शीतउष्णजनित किंवा आपसमें नारकियों ही बारा उदीरित दुःखको भी सहते हैं इसप्रकार समुच्चय है । यदि सूत्रमें चशब्दका उल्लेख नहीं किया जाता तो 2 पहिलेके तीन नरकोंमें रहनेवाले नारकी संक्लिष्ट असुरकुमार देवोंद्वारा उदीरित दुःखों को ही भोगते । हैं उपर्युक्त शीत आदि जनित दुःख उन्हें नहीं भोगना पडता यही अर्थ होता जो कि आगमविरुद्ध । ६ है। शंका अनंतरत्वादुदीरितगृहणानर्थक्यमिति चेन्न तस्य वृत्तौ परार्थत्वात् ॥७॥ _ 'परस्परोदीरितदुःखाः' यहांपर उदीरित शब्दका उल्लेख किया गया है उसीकी संक्लिष्टासुरेत्यादि है सूत्रमें अनुवृत्ति आ जायगी इसलिये इस सूत्रमें पुनः उदीरित ग्रहण करना निरर्थक है ? सो ठीक नहीं। है 'परस्परोदीरितदुःखाः' यहांपर अनेक पदार्थों की अनेक समास है। उस समासके वीचमें उदीरित शब्द * पडा हुआ है इसलिये यदि अनुवृत्ति की जायगी तो जितने पदार्थों का मिलकर समास है उन संबंकी , होगी केवल उदीरित शब्दकी नहीं हो सकती अतः 'संक्लिष्टासुरेत्यादि' सूत्रमें उल्लिखित उदीरित पद ६ निरर्थक नहीं । यदि यहांपर फिर यह शंका की जाय कि वाक्यवचनमिति चेन्नोदीरणहेतुप्रकारदर्शनार्थत्वात् ॥८॥ ___समासके वीचमें पड जानेके कारण यदि उदीरित शब्दकी अनुचि दूसरे सूत्रमें नहीं जा सकती है तब 'परस्परेणोदीरितदुःखाः सक्लिष्टासुरैश्च प्राक्चतुर्थ्या' ऐसे वाक्यरूपसे सूत्रोंका पाठ करना चाहिये ऐसा करनेसे उदीरित और दुःख शब्दका पुनः उल्लेख न करनेसे महान लाघव होगा? उसका समाधान - यह है कि यद्यपि ऐसा करनेसे एक उदीरित शब्दका प्रयोग निरर्थक जान पडता है तथापि दूसरी बार । १२
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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