________________
अम्मान
SHRESTHA
: स्थित हैं 'द्वे इंद्रिये यस्य सोऽयं दींद्रियः, स आदिर्येषां ते द्वींद्रियादयः' अर्थात् जिनके दो इंद्रिय हों वे
दींद्रिय और द्वद्रिय जिनकी आदिमें हों वे बौद्रियादि हैं, यह सूत्रमें स्थित द्वींद्रियादि शब्दकी व्युत्पचि ५ है। शंका
अन्यपदार्थनिर्देशाींद्रियागृहणं ॥२॥ न वा तद्गुण संविज्ञानात् ॥३॥ द्वींद्रियादि यहांपर ऊपर बहुव्रीहि समास बतलाया गया है बहुव्रीहि समासमें अन्य पदार्थ प्रधान और वाक्यगत पदार्थ गौण माने जाते हैं। यहांपर भी अन्य पदार्थ प्रधान और द्वींद्रिय पदार्थ उपलक्षण हैं इसलिए जिसप्रकार 'पर्वतादीनि क्षेत्राणि' अर्थात् पर्वत आदि क्षेत्र हैं यहांपर क्षेत्र के ग्रहणसे पर्वतका ग्रहण नहीं होता उसीप्रकार 'द्वींद्रियादि' यहांपर भी द्रिय शब्दका ग्रहण नहीं हो सकता इसलिए द्वींद्रिय जीव त्रस न कहे जा सकेंगे ? सो ठीक नहीं । बहुव्रीहि समासके तद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि । 4 और अतद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि ये दो भेद माने हैं यदि अतद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि मानी जायगी तब है 'द्वद्रियादि' यहाँपर दौद्रियका ग्रहण नहीं किया जा सकता किंतु यहां तो तद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि
समास मानी गई है इसलिए 'शुक्लवाससमानय' अर्थात् जिसके वस्र सफेद हों उसे ले आओ, यहांपर जिसप्रकार शुक्लवासस शब्दका भी ग्रहण किया जाता है उसीप्रकार द्वींद्रियादि यहांपर भी द्वींद्रिय शब्दके ग्रहणमें कोई आपचि नहीं। तथा और भी यह बात है कि
अवयवेन विगृहे सति समुदायस्य वृत्यर्थत्वाहा ॥४॥ विग्रह अवयवोंके साथ होता है और समासका अर्थ समुदायगत माना जाता है। इसलिए जिस५ तरह 'सर्वादि सर्वनाम' अर्थात् सर्व आदि शब्द सर्वनाम संज्ञक हैं यहांपर उपलक्षणभूत भी सर्वशब्दको
+05+SHES